पाजेब
मैं कितना भी व्यस्त रहूँ
तुम्हारी पाजेब
मुझे खींच ही लेती है
छन छन करती हुई
तुम यूंही कितनी बार
आती हो
जाती हो
मैं कलम माथे पे टिका
कभी नीचे देखता हूँ
कभी तुमको देखता हूँ
तरबतर सराबोर
सारा दिन
कितने काम हैं तुम्हें
चैन धरो
बिछिया निकल गयी दौड़ते
कुकर की सीटी पर
चट झुकी ठीक किया
चली आईं
तुम इधर बोलते,
खाना हो गया
आ जाईये।
लट सम्भाली
घुंघरू उकेरे,
चलते कैसे
टेढ़े से देख रहे मुझको,
तुम्हारी आहट के
इतने पास
रहते हैं पाजेब
जैसे तुम्हारी तस्वीर और मेरी जेब।

तुम्हारे पांव मैंने देखे पायल देखी बिछिया देखे सोचा छूने से टूट जाओगी या जला जाओगी कैसे कहूँ कैसे देखे !

#प्रज्ञा 24 अप्रैल #आपकीफ़रमार्ईश

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