आज बतौर म्यूजिकल ट्रीट, सेपरेशन के गाने पोस्ट करने की थीम रखी गयी।

अपनी यू ट्यूब प्लेलिस्ट में बिरहा दा सुल्तान दिखा।

विरह के गीतों में शिव बटालवी जी की इबादतों को नहीं भूला जा सकता , इंसान उनको सुनते हुए या तो खुदा से मोहोब्बत कर बैठे या खुद उनसे।

तो कैसे मिली मैं शिव बटालवी जी की कविताओं और नायाब गीतों की मंजूषा से।

जुलाई 2017 में मैने इग्नू एम.ए. हिंदी में दाखिला लिया, सितम्बर अक्टूबर तक एडमिशन कन्फर्म होने के बाद असाइन्मेंट पढ़ने बनाने का सिलसिला शुरू हुआ।

सबसे पहले हिंदी कविता वाला सब्जेक्ट चुना,क्योंकि वही इंटरेस्टिंग अप्सरा लगती है , एम. ए. हिंदी सिर्फ हिंदी काव्य नहीं उसमें हिंदी साहित्य का इतिहास जैसे हल्क अवेंजर भी आते हैं जिसका एक चैप्टर एक मुक्के के बराबर है।

खैर कविता वाले पेपर में दूसरा प्रश्न था बाबा नागार्जुन की कविता का भावार्थ।
कविता थी -” कालिदास सच सच बतलाना”।

पढ़ा बहुत स्टाइल से पर समझ कुछ नही आया।

अब तक किताब तो आयी नहीं थी , तो कहां देखते , आई भी होती तो पहले गूगल ही करते तो मैंने गूगल किया।

देखा तो कुमार विश्वास आये , फिर यू ट्यूब , और ये तो गाना बनाया है।
क्या गाना बनाया है।
वाह , सभी को सुनना चाहिए कालिदास ।

फिर पता लगा माँ हिंदी की सेवा में कुमार विश्वास जी ने #महाकवि शृंखला चलायी #एबीपी न्यूज़ के सौजन्य से।

उसमें बाबा नागार्जुन वाले एपिसोड में #कालिदास सच सच बतलाना फिल्माया था।

तो चूँकि जिओ की जय है और मर्जी का फ्री इंटरनेट है, मैंने ताबड़तोड़ महाकवि के एपिसोड्स देखने शुरू किए जैसे कोई वेबसिरिज हो।

नागार्जुन, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर , दुष्यंत, महाप्राण निराला जैसे कई कवियों की जीवनी बढियाँ फ़िल्म के जैसे देखने को मिली , बिना एकता कपूरी आडम्बर।

दिसम्बर 2017 रहा होगा मैं यूट्यूब पे #महाकवि के महाप्राण निराला पर फिल्माए दृश्यों में कुमार विश्वास की हिंदी को ध्यान से सुन रही थी।

“मैं प्रेम का कवि हूँ ” कहते हुए उन्होंने अमृता प्रीतम की बात की और शिव बटालवी का नाम लेकर ये पंक्तियां कहीं:

“मेरे गीत वी लोक सुनींदे ने
नाल काफिर आख सदीदें ने”

कुमार विश्वास जी तो बढ़ गए , मेरा रिकॉर्ड प्लेयर अटक गया। इन दो लाइनों को बार बार सुन कर गूगल किया कुछ नही मिला , शायद मुझे ठीक से पंजाबी के शब्द पकड़ में नही आ रहे थे। तो मैंने शिव बटालवी को ढूंढा ।

एक उत्कंठा हुई थी , कौन है ये।

बटालवी जी के बारे में विकी पर पढ़ा और उनकी आवाज़ में कुछ रिकॉर्डेड गाने सुने जो उन्होंने कवि सम्मेलनों में गाये होंगे। कील ठुक गयी थी , कुछ अलग था इनकी शायरी और अंदाज़ में।

गाना.कॉम पर बिरहा दा सुल्तान के नाम से काफी गाने दिखे।

महेंद्र कपूर की आवाज़ ने न्याय किया है, पर जो कमरे खुद शिव बटालवी के गाये गीतों से खुलते हैं वो असर और किसी से नहीं होता।

इक कूड़ी जिदा नाम मोहब्बत गाने को जब शिव बटालवी गाते हैं तो “गुम है….गुम है…गुम है ..” के अंदर हम किसी को ढूंढने लगते हैं।

लंदन बी.बी.सी. के आखिरी इंटरव्यू में झुक कर अपनी किताब उठाई और “कि पुछदे हो यार फ़कीरा दा ” के स्वर ऐसे उठाये , सुनने वाला उनके साथ इबादत की सीढ़ियां चढ़ता गया, फिर उनकी आवाज़ जैसे क्षितिज से मिल गयी सुनने वाला भी उसी में कैद हो गया ये सोचते हुए की नहीं थोड़ा और गाओ, अभी खत्म नहीं हुई शायरी आगे भी सुनना है, लेकिन इंटरव्यू आगे बढ़ जाता है ।

हम उनके हँसते चेहरे को रोककर साथ साथ चल रहा गाना आँख बंद कर के सुनते चले
जाते हैं।

जगजीत सिंह द्वारा गाये ” गमा दी रात लम्मी है ” में पूरे भाव टूट कर आये हैं।ऐन मौके पर साम्रगी वर्डप्रेस ब्लॉग से इसका बढियाँ ट्रांसलेशन भी मिला।

कांदिवली से अंधेरी तक का सफर अब बटालवी जी के गानों के साथ ही काटने लगा।

फिर एक दिन महेंद्र कपूर की आवाज़ में “की पुछदे हो हाल फकीरा दा” सुनी तो कुमार विश्वास जी की सुनायीं वो दो लाइनें भी मिल गयीं।

उसके बाद सफर उनके गानों का है कि रुकता नहीं। BBC पे वो इंटरव्यू देखी उनकी।
बेबाकी देखी।
कौन नहीं दीवाना हो जाएगा शिव बटालवी जी का।
साक्षात खुदा का बंदा।
बानगी।
इबादत।
मेरा मानना है कि मोहोब्बत अगर देह लेकर जन्मी होगी तो उनमें से एक शिव बटालवी जी भी रहे होंगे।
थीम सजेस्ट करने के लिये कबि रंजन पाठक जी का अभिनन्दन किया ।
कितना आनंद हुआ बटालवी जी को सुनकर
फिर और फिर और हमेशा।

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