20 मई को नयी बात हुई रायना पांडे के प्रोत्साहन से मैंने Open Mic , performance poetry की तरफ यकायक रुख किया है, ये सफर जारी रहेगा।
सफर की शुरुआत में तोहफा दिया है खुद को। एक किताब ।
Amir Khusro – THE MAN IN RIDDLES , स्वर्गीय अंकित चड्ढा द्वारा संकलित।
सोचा इस किताब से अच्छा और कुछ एक नई शुरुआत के लिए हो ही नही सकता।

इसके कवर पेज पर हाथ फेरियेगा तो लगेगा खास ईरान में बनी कालीन का कोई डिज़ाइन है और उसके मखमल पर हाथ फेरा जा रहा है। या शायद ये खुद अंकित की वो कालीन है जिसपे बैठकर वो दास्तानें गढ़ता होगा।
जैसे अकबर के दरबार के बीचों बीच जो संगमरमर रहा होगा वहाँ ऐसे किसी डिज़ाइन पर बैठ शेरों शायरी और गीत संगीत का समां बंधता होगा।
फिर इसके पन्नों में बीस की बीस पहेलियों की अलग चित्रकारी।
क्या तलीनता से पूरी किताब पे काम किया है, वाह पढ़ते पढ़ते आंखों को लगे की सैर सपाटे पे आये हैं। पहेलियां हैं, रंग है, बादल, नज़ारे , आँख , चाँद , तारे सब एक साथ कोई सुंदर नृत्य करने की सी भंगिमा में निकलते चले जा रहे हैं।
किताब कुछ ऐसी जच रही है कि मुंबई की मेट्रो से उठनेे वाली धूल भरी रैकों पर कैसे रखूं इसको।
जैसे एक मध्यम वर्गीय परिवार के घर क्राकरी का सेट होता है, जो सिर्फ मेहमानों के आने पर थेर्मोकोल के साँचों से निकलता है वैसे ही ये तराशी नक्काशी वाली किताब अमेज़न की बबल रैप में रहा करेगी और तबियत से निकलेगी शौक पर, शौक बड़ी बात है, बहुत शौक से संकलित किया है ,इसे छूकर , देख कर लग रहा है। एक एक पन्ने पर घंटों की मेहनत लग रही है।
ऐसा बहुत कुछ और भी हो सकता था। ऐसा बहुत कुछ हो सकता है। लेकिन ये किताब ऐसी अब और नहीं आएगी।
प्रज्ञा 22 मई , मुम्बई, 12.35 am