मैं सत्य हूँ कथानक या नाट्य नहीं
जीवम में सम्रागी हूँ अमात्य नहीं
कोई आहत मुझसे हुआ नहीं
था जितना गले तक रोक गयीं
सुनो हंस कर निभ जाएगा
जब तक रंगमंच खेल गयी
थे जितने सारे पात्र मिले
बिन याद किये निभा आयी
पर अनंत में वहीं खड़ी
हूँ अब तक तुमको ढूंढ रही
आवाज़ तो दो हो या कि नहीं
या ये मेरी मृगतृष्णा है
तितर बितर सी दौड़ रही,
जब से खुद को समेट लिया
आडम्बर खुलता जाता है
है मेरा मस्तिष्क बड़ा
ब्रह्माण्ड समाया जाता है
कोहिनूर भी भला कभी
जोड़े में बनाया जाता है?

#प्रज्ञा 29 मई , 2018

Advertisement