मुझे कैनवास दे दो
उसमें एक पंछी दे दो
जो पंख कुतरे होंगे
उन्हें हम फिर रंगेंगे
वो उड़ा फुर्र देखो।
मुझे एक कैनवास दे दो।
उसमें अलमारी बनायें
यादों में रंग लाएं
देखो कुछ काला न होवे
मलिन पहले ही बहुत हैँ
अरे कुछ चटख भरदो
किताब की रैक रंग दो
खुलती हो काठ ऐसे
कीर की आवाज आये
खोले पन्ना जो बच्चा
भालू उठ बैठ जाये।
जो आँखे मल मलाकर
बचपन उठ गया था
उसे सोता दिखा दो
बिना ब्रश को घसीटे
थपकी ठीक आये
बच्चा जग ना जाये।
मुझे कनवास दे दो।
विवेकानंद बनाऊं
कभी गांधी बनाऊं
कभी नेहरू बनाऊं
कभी इंदिरा बनाऊं
पसन्द की बात नहीं हैं
यही थे जो टंगे थे
घर कि दिवारों पर।
थी एक गिटार भी जो
नहीं मैंने बजायी
उसे फिर टंगती हूँ
आगे छोटी सी पाकिट
भी उसमें टाकती हूं
छोटे औजार कुछ और
अंगूठे में जो फिट हैं
ब्रश ऐसा घुमाओ
लगे कीे साज अमिट हैं
शौक की बात नही है
यही था जो मिला था
सातवें जन्मदिन पर।
मुझे कैनवास दे दो
है जितना याद अब सब
बना कर हल करेंगे
समय से एक एक चुन कर
सारे मोती गढ़ेंगे।
कभी टीने का बस्ता
वो दो एकम पहाड़ा
खुले आँगन में नल भी
घघा गंगा किनारा
लचकता बगेड़ी वाला।
हाथ में छोटी से पिन्सिल
और एक मिटना भी है
मैडम इसकी नही है
इसने चुरा ली है
जरूरत तो नही थी
पर जब रंगना ही है तो
हम ये भी रंगेंगे।
मर्जी के रंग भरेंगे
चिड़िया घर करेंगे
कभी विद्रोह दिखेगा
कभी आग्रह दिखेगा
कभी आक्रोश होगा
जिसका अवशेष ना हो
उसका रोष होगा।
अब वो आता दिखेगा
फिर न जाता दिखगा।
मैंने पिंजरा बनाया
उड़ते उड़ते पता क्यों
पँछी लौट आया
आके भीतर बैठा
उसने कुंडी डाली
बोला कहाँ मैं उड़ के जाऊं
नहीं कोई प्रयोजन
अब तो जो है यहीं है
इसी घेरे में करनी है सारी चित्रकारी ।
अपने पंख में से एक टीस खींची
उसका रक्त स्याही उससे कलम भींची
उसको करना भी क्या था
जो था बन्द आप भीतर
वो आप ही उड़ रहा था।
—- प्रज्ञा, 9 दिसम्बर 2017
दुनिया घूमने के लिए वक्त,
पैसा और साथ कुछ लोग चाहिए होते हैं,
ऐसा सिर्फ हकीकत में होता है ।
फिर किताबें और भी हैं।
Picture Courtsey : Swati Roy