मुझे तुम्हारा सान्निध्य पसंद है
पर एक दिक्कत हो जाती है
मेरी हूँ हूँ से तुम्हारा काम नही चलता
तुमको मेरे साथ मेरी रूचि
भी चाहिए होती है।
अब ये बस के बाहर की बात है
तुम रहो ना अपनी खुश
खबरों में जान पहचान की
टोह तफरी के बीच।

मैं कह दूंगी की मतलब नहीं,
तो मूँह फूल जाएगा तुम्हारा
तो रहने दो मुझे दीवार से टिके
कमरे में अपनी कोशिशों
और सपने में।

जगाती रहती हो और मेरे
ऊँघने से इतनी शिकायत भी है
मैं सारी रात नहीं सोई
तुम जाने कहाँ थी।

चादर नहीं मिल रही थी
थोड़ी देर बाद बेडरोल
हो गयी तो आंख लगी
तुम जाने कहाँ थी।

अभी तुमसे शिकायत नहीं
तो उससे भी दिक्कत
अगर कुछ बोलने लगूँगी
तो उससे भी दिक्कत।

मुझे रहने दो टिके
दीवारों से ये मुझे
सहारा दे रहे हैं
इनकी टेक में मैं ऊपर तुम्हारी
ओर देख पा रही हूँ।

तुम बोलती जा रही हो
मैं लिखती जा रही हूँ
अब यही मेरा काम है
ये अंदर बाहर के कामों
की उम्मीद मुझसे
नाउम्मीद रहें।

#प्रज्ञा मुंबई

4 जून 2018, शाम 4 बजे की कॉफी के साथ