स्वाति बनर्जी ने बड़ी करारी याद ताज़ा की आज , पन्द्रह सौ अड़तालीस ओउट्रम लेन , मुखर्जी नगर , नई दिल्ली में व्यतीत बेतरीन तीन साल।
ये साल 2006 की तस्वीर है जब हमने हमारे सीनियर्स को हॉस्टल में फेयरवेल दी थी।
बहुत साधारण थे हम।
आज 2018 के युवा की तुलना में तो बेहद साधारण और हम ज़मीनी तौर पर खुश थे, हमको अलग से फिजेट स्पिनर नहीं खरीदना पड़ता था , स्ट्रेस में छोटी नोकिया को अपनी दो उंगलियों के सहारे घुमा के बतिया लेते थे। बेहद खुश रहते थे।
हमें कम से कम 10 मोबाइल नम्बर याद हुआ करते थे, अंकल का PCO थोड़ा आगे किसी बंगलो की बेसमेंट में था। सामने बंतो आंटी की दुकान जहाँ से महीने की शुरुआत में बोरबन और अंत में पारले जी लाते थे।
हमने बहुत गप्पें मारी हैं एक दूसरे के कमरों में जुट के, फोन इतने एडवांस नहीं थे। हमारा मनोरंजन भी ऐसा था कि हॉस्टल में जिसे गाना या डांस आता हो उसके टैलेंट को बढ़ावा मिल जाये। भूत की कहानियों को भी।
कजरारे कजरारे हमारा नेशनल एंथम था। हमारी छोटी सी रंगीन टीवी में वो बजा नहीं कि सारे कमरों से लड़कियां निकल कर वो फेमस वाला स्टेप करती थीं और “मेरी अंगड़ाई न टूटे तू आजा” तक हम गा कर फिर धीरे धीरे अपने कमरों में चले जाते थे।
पूरा हॉस्टल एक सा तैयार हो जाता था । गाना बजाना हुआ नहीं कि 1548 के DJ हो जाते थे हॉस्टल के ओनर वीरेन भैया। उनका म्यूजिक सिस्टम लगा कि बस कौन रुकता है। उसी समय वो कव्वाली गाना भी खूब चला था “इश्क़ जैसे है एक आँधी, इश्क है एक तूफ़ां” बज जाए एक बार फिर क्या था, मतलब सारे एक जैसे पचीस तीस लोग समंझिये साथ ही रह रहे थे अलग अलग कमरों में।
हमें मोबाइल से एफ एम तक का लगाव था। फिर
एस एम एस पैक का , फिर म चैट उसके बाद भी हम उसे फेक के ही कहीं बगल में लेट रहते थे। नोकिया कितना भी फेकिये नहीं टूटता था।
दस हज़ार का मोटो रेज़र आया एक दिन 2007 की शुरुआत में फिर वो चोरी हो गया और उसने दो पक्की कही जाने वाली दोस्तों में दरार कर दी। उसके बाद से मोबाइल ने ही कई दरार किये हैं।
एटीएम एक अच्छा अविष्कार था पर ये मोबाइल ना भस्मासुर निकला।
यादें अच्छी आईं आज , नींद कैसी आती है देखती हूँ।
शुभरात्रि।
-प्रज्ञा 29 अगस्त 2018