तुम कभी ऐसे ही फिर
बात करना मुझसे
तारीख की आदत कुछ जमी नहीं
मिलते रहना कहीं अचानक
की साथ हँसे और फिर मिलें
मिलते रहने के लिए।
कुछ लोग हमेशा आज आये
बस कल जाने के लिए,
और फिर आया सन्देसा
तुम्हे याद किया है कहने के लिए।
तुम आबाद रहो मेरी जान
मुझे मज़ा आता है ,
ऐसे ही कट कट के जीते रहने में ।
कुछ ऐसी सी है तासीर मोहोब्बत की
होती ही है बिछड़ते रहने के लिए।
प्रज्ञा मिश्र
अति सुंदर रचना।।
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Dhanywad
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सराहनीय
सुंदर रचना
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