“मम्मी वो प्लूटो से पढ़ो न आज।”
बड़े दिनों बाद हमने सोने से पहले प्लूटो निकाली।
अभिज्ञान को प्लूटो मैगज़ीन की चित्रकारी अच्छी लगती है।उसकी छोटी कवितायें , टू लाइनर्स उसे मज़ेदार लगते हैं।
पाखू और बजरंगी मासूम हैं साथ ही बुद्धिमान भी, उनका तर्क बिल्कुल सही है कि क्यों अपने मन की करने वाला उल्लू कहलाता है।
अभिज्ञान इसकी गहराई अभी नहीं समझपाए पर मेरे पापा की तरह मेरा भी यही विश्वास है कि किताबें सब्सक्राइब हो के जो घर आ रही हैं तो उनको देखते पलटते वो अपने मन की समझेगा भी और करेगा भी ।
लोग उल्लू कहेंगे लेकिन ‘बुद्धू कोई नहीं होता सब अपनी अपनी तरह से बात समझते हैं” । इस चित्रकथा को प्लूटो अंक 3 वर्ष 3 अगस्त – सितम्बर मैगज़ीन में पूरा पढ़ना और उसपर विचार करना बेहद अर्थपूर्ण रहेगा चाहे आप किसी भी एज ग्रुप के हों।
फिर हमने पढ़ा की दशहरा को मैसूर वाले दसरा हब्बा कहते हैं।मैंने पूरा पन्ना फट फट पढ़ के सुनाया जिसकी आखिरी लाइन थी , “क्या तुम मेरे भाई को पहचान सकते हो? उसने नीली टोपी पहनी है।”
मैंने समझदारी दिखाते हुए सोचा की वाह कहानी में अच्छी इन्फर्मेशन थी। क्या होता है , कैसे होता है पता चला , चलो आगे पढ़ते हैं। ये सोचते हुए पेज पलट ही रही थी कि अभिज्ञान ने टोका:
“अरे रुको रुको देखने दो कहाँ है ।”
मैंने बच्चा समझते हुए उसे कुछ बोला होता उससे पहले उसने निहारिका शेनॉय जी के बनाये चित्र में फटाक पेड़ की तरफ जाते हुए नीली टोपी वाला लड़का ढूंढ लिया।
मैंने आखिर की लाइन दुबारा पढ़ी तब मुझे समझ आया कि इसने क्या ढूंढा और मुझे क्यों रोका।
मेरे और अभिज्ञान के मनोवैज्ञानिक अंतर और एकग्रता की परख को समझना मज़ेदार रहा ।
“ये पेड़ पर क्यों चढ़े ?सामने तो जगह खाली है”
“ताकी सबकुछ दिखाई दे, वहाँ से सवारी है।”
“महाराज कहाँ हैं? ओके दूसरी सुनाओ”।
चंदन की बकरी और राशिद में माली बाबा ने मासूम बचपन में इंसानियत की कड़ी को थोड़ा मज़बूत कर दिया जिससे इस बच्चे को “लोग अच्छे होते हैं ” का भरोसा बना रहेगा। अभिज्ञान ने ये मेरे साथ बोल बोल के पढ़ा , अभी समझ कितनी बढ़ी ये तो अगली रीडिंग में ही पता लगेगा।
सोने से पहले उसने किताब कवर पूरी खोल कर मुझे बताया की “जब एक तरफ का पन्ना देखोगी तुम्हे चित्र आधा दिखेगा। पूरा देखने के लिए इसे खोलो”। हमने सागर,नदिया,झील का नीला संसार देखा , हरे गलीचे सी घास बिछी है, सारे बच्चे खेल रहे हैं।
इकतारा तक्षशिला से ली गयी किसी किताब में मैंने पढ़ा था ,” बच्चे नींद में अपने सपनों में सबसे अकेले होते हैं उन्हें कहानियों का साथ दीजिए उन्हें सपनो में सुरक्षित कीजिये।”
बचपन निर्माण देश निर्माण है क्योंकि समाज में व्याप्त कई परेशानियों पर बस इस बात से नियंत्रण आ सकता है कि हम माँ बाप दस वर्ष की आयु तक अपने बच्चों को क्या दिखा करा रहे हैं।
जितने न्यूरॉन कनेकशन बन सकने थे ये अभी तक ही बनने हैं । इसके आगे सब श्रृंगार पटार है जिसे रात में वैसे भी उतार कर सोना होता है।
https://www.ektaraindia.in/ इकतारा बाल साहित्त्य में बहुत उम्दा कर रहे हैं।