मुंबई, बोरीवली, सिद्धार्थ नगर स्थित प्रतिष्ठित गायत्री मंदिर की दीवारों को सजा कर देखने के लिए बहुत खासा आकर्षण तैयार हो चुका है ।
महाराष्ट्र की बेहतरीन आदिवासी वारली चित्रकला को बहुत करीब से देखने का मौका , इतना महीन बारीक काम और कितने सुंदर सन्देश।
सभी प्रस्तुतियों में मनुष्य और प्रकृति के परस्पर सामंजस्य को दिखाया गया है, नाना प्रकार के जीव जंतुओं के माध्यम से सह अस्तित्व( coexistence) दर्शाया है।
सूर्य , इंद्र आदि देवों की वंदना करने के वाली चित्रकारी है जो हमेशा से भारतीय परम्परा का अभिन्न अंग रहा है। जैव अजैव निर्भरता की पद्धतियों को बच्चों को दिखाया समझाया जा सकता है कि कैसे इस धरती पर जीवन , सूर्य जल वायु और मिट्टी पर निरभर है और धरती पर कितने प्रकार का जीवन है।
आदिवासियों में प्रचलित वाद्य यंत्र , नृत्य , मनोरंजन के तरीकों को समझा जा सकता है।
विवाह की तैयारियों को वारली आदिवासियो की दृष्टि से देखना अद्भुत है। सभ्यता के चरम पर एक अनछुई प्राचीन कला का इतना करीब होना रोमांचकारी लगता है।
मलाह का महीन जाल जो वो अपनी नाव से समुद्र में फैला रहा है वाकई काफी कठिन रहा होगा बनाना।
हर चित्र में समझा जा सकता है कि आदिवासी जीवन की हमारी प्रकृति पर कितनी निर्भरता है ।
प्रवेशद्वार के पास राधा कृष्ण जी की पेंटिंग है जो की वारली पैटर्न में रंगीन चित्र के रूप में बनाये गए हैं। अब तक मैंने बहुत कम ऐसी वारली चित्रकारी देखी थी जिसमें इतने चटख रंगों का प्रयोग हुआ हो।
पिछले हफ्ते हम बोरीवली में शहर के बीचों बीच स्थित संजय गांधी नेशनल पार्क गए तब वहाँ के एक कर्मचारी ने बताया था की वारली आदिवासी जब तक ये चित्रकारी अपने घर मे नहीं बनाते तब तक शादी ब्याह जैसे शुभ काम शुरू नहीं होते।
इसे देख कर मुझे मिथिला के घरों में लगे मिथिला पेंटिंग या मधुबनी पेंटिंग की याद आती है।
प्राचीन काल से ही मंदिर कला के पोषक रहे हैं।
ऑफिस की व्यस्तता लेकर यूँ तो मंदिर बहुत कम जाना होता है पर इन चित्रों में दिए सन्देश को देखने के लिए और तस्वीरें लेने के लिए आज कल मौका निकाल कर जा रही हूँ।
सभी चित्रों को यहाँ दी गयी लिंक पर देखा जा सकता है वारली चित्रकारी
#प्रज्ञा