समाचार देखने के दौरान मैंने सुना की पानीपत का वार मेमोरियल म्यूजियम इसलिए बनाया जा रहा है ताकी ये याद रखा जा सके की उन लड़ाईयों में योद्धाओं ने भारत को कैसे एक किया।

शिलान्यास भाषण में बात इस तरह रखी गयी जैसे इन लड़ाईयों से देश को लाभ हुआ हो, जो की बिल्कुल सच नहीं है। पानीपत की तीसरी लड़ाई में हम एक भारत का सपना अब्दाली के हाथ हार गए थे और फिर हार गए अगले दो सौ साल।

नए संग्रहालय की शिलान्यास तक की बात अच्छी है, इतिहास जानना चाहिए, पर इससे राजनीतिक मंच में लाभ उठाने की सोचना अच्छी बात नहीं होगी क्योंकि इसकी यादें दुखद हैं।

इन तीनों लड़ाईयों का अंतिम परिणाम अंगेज़ों का शासन हो गया और अंग्रेज़ी शासन का परिणाम भारत का विघटन।जो की देश की जेनरेशनस के लिए अब तक हेडेक बना हुआ है।

1526 में राणा सांगा ने खुद बाबर को न्योता दिया की आइये मदद करिये मुझे इब्राहिम लोदी से लड़ना है। बाबर ने चाल बदल दी और परिणाम यह हुआ की नई तोपों के साथ मुग़ल सल्तनत स्थापित हो गया।

बीच में हुमायूँ को हरा कर शेर शाह सूरी आये।

1556 में 30 साल बाद जब अकबर चौदह वर्ष के थे तब उनके सेनापति ने राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य को हराया दोबारा अकबर का राज्य पूरी तरह स्थापित हुआ।

1761 में मुग़ल शासक, अन्य क्षेत्रीय राजा कमज़ोर थे और मराठा मज़बूत। तो एक बार फिर काबुल से आये लुटेरे और आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली की मदद लेकर क्षेत्रीय राजाओं और मुगलों ने मराठा को हरा दिया और परिणाम भारत की लूट खसोट हुई। 1761 के दौरान ही होल्कर और सिंधिया और अन्य मराठा गुटों के बीच वर्चस्व को लेकर फुट पड़ चुकी थी ।अब, अब्दाली , पूरे भारत को, मुगल को, मराठों को औऱ कमज़ोर कर गए। अब कोई मज़बूत शासन एक छत्र बचा नहीं और अंग्रेज़ अपनी चाल चल गए।

उम्मीद है एक स्टेट ऑफ द आर्ट संग्रहालय इतिहास से रूबरू कराने के लिए और मराठा योगदान के लिए ज्यादा पॉपुलर हो और इसका कोई दूसरा तीसरा राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश न हो । इतिहास ज़रूरी है जानना , भविष्य के घटना क्रम को समझने के लिए।

राय मेरी अपनी है।

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