हेलो दोस्तों।
Check out the channel *”शतदल”* on the online radio app Kuku FM.
Download the app and listen to it by tapping on this link:
कुकू एफ एम पर शतदल के श्रोताओं को प्रज्ञा का नमस्कार ।आज बुधवार है, आप सुन रहें है “इतनिमान के ख्यालात”।
आज मैं सुनाऊँगी कविता शैली में एक कामकाजी माँ के मनोभाव जो शहरी जीवन मे अपने बच्चे को घर पर छोड़ कर सारा दिन बाहर होती है। दिन की थोड़ी सी गलत शुरुआत कितनी भारी गिरती है उसपर। हम समझते हैं बच्चा छोटा है चीज़ों को भूल जाएगा उसे कहाँ याद रहेगी पाँच साल के उम्र की डांट डपट। लेकिन ऐसा नहीं होता वे चिड़ चिड़े हो जाते हैं। समूह में जाने से कतराते हैं। अचानक से रोने लगते हैं। हाथ उठाते हैं क्योंकि उनको भी समझ नहीं आती की कमी कहाँ है, वे तो बच्चे हैं।
ये समझदारी मुझे मेरे बेटे की परवरिश के साथ आयी। इसलिये बच्चा माँ बाप का शिक्षक भी हो जाता है। लालन पालन जैसी बड़ी शिक्षा बच्चे ही तो हमें सिखाते हैं। बहुत खुशनसीब होते हैं वे बच्चे जिनके माता पिता पहले से बाल मनोविज्ञान समझते हुए अपने बच्चों की परवरिश करते हैं।
एक बार की बात है, परिवार के कुछ लोग छुट्टियों में मिलकर प्रस्थान कर रहे थे। आदतन हमने आपस में तस्वीर ली। पाँच वर्षीय मेरा बेटा किसी बात पर चिढ़ गया और इस हद तक बात चली गई की उसने खुद को सबसे अलग कर लिया। मैंने अलग कमरे में ले जा उसे ऐसे बरताव के लिए दो थप्पड़ जड़ दिए। वो और गुस्सा हो बातें करने लगा। मैंने देर न की समय रहते उसको थोड़ा शांत होने दिया । फिर बिना हाथ उठाये बात करना जारी रखा। उसका विश्वास जीता। धीरे धीरे रोज़ उसके उठने समय प्यार से उठाने का खास ख्याल रखा और धीरे धीरे अधिक आस पास रहने लगी । उसका चिड़ चिड़ापन जाता रहा। ये एक बार का काम नहीं। चिड़चिड़ापन लौट लौट आता है। फसल के बीच जंगली घास की तरह बड़ी मेहनत से छंटाई करनी होती है। बिना पौधे को क्षति पहुँचाये। माँ – बाप माली हैं।
बेटा ,
कहते हैं सोने से ठीक पहले
दिमाग में वो ही
बातें आती हैं
जो हम सबसे ज्यादा करना चाहते हैं ,
और रोजमर्रा की जरूरतों को
पूरा करते हुए नहीं कर पाते हैं।
मैं कल तक खुद को देखा करती थी
मैं हूँ मंच है और मेरे बाकी के शौक
पर बेटा अब पाँच सालों से
न रियाज़ में दिल लगता है
और न किताबों का रोग
मुझे ख्याल आता है
तुमसे बात नहीं हुई
आज आफिस निकलते
तुमको निहार नहीं गयी।
डाँट कर उठाया
धक्के से नहलाया
स्कूल भेजा जैसे तैसे
खुद भागी जैसे तैसे।
फोन की पूछताछ सामने से हो पाती तो
काश मैं भी बस यूँ ही तुमको
खेलते देख पाती तो
इतना सा शौक तुम्हारा
की” मम्मी बैठी रहे”
मेरी पानी की बोतल पास लेकर
मैं पूरा कर पाती तो।
मैं क्या कर लूंगी एवेंजर के खिलौने देकर
वो टूट के कचरा हो जाते हैं।
तुमको थोड़ी देर की खुशी तो दे जाते हैं
लेकिन ये चिड़चिड़ाहट कम नहीं करते
जो माँ के साथ बैठने से कम होती है
ये झुंझलाहट कम नहीं करते
जो तुम्हारी मीठी प्यारी बातें सुनने से कम होती है
तुमने ध्यान नहीं दिया है अब तक
क्योंकि तुम बहुत बच्चे हो।
वो 2016 का मार्च रहा होगा
तुम पूरे परिवार को एक साथ अलविदा कहने
तस्वीर खिंचवाने नहीं आये थे।
सबके सामने बड़ी जिद पे अड़कर
किसी बात पे जो गुस्सा के भाग आये थे
बहुत आक्रोश सा दिखाया बड़ों के सामने
बिगड़ गया पूरा कहलाये थे।
मैंने बहुत तेज़ मारा था
उस हरकत पर
तुम रोकर चुप हो गए
थोड़ी देर सुबक कर।
मुझे मेरा सबक दे गए
क्यों किया एक पांच साल के बच्चे ने ऐसा
मुझे सोचने पर मजबूर गए।
और आज का दिन है
दो साल से ऊपर होने को है
बिना कुछ सीखी तुम्हारी मम्मी
हर दिन सीख रही है
तुम्हे पालना ।
और सोचती है तकिये पर सिर रख
क्या कैमरों से देखते देखते
मैंने तुमको कम देखा?
तस्वीरों को खींचते हुए
खिंचती लम्बाई को कम देखा?
तुम बिन सिखाये साइकिल सीख गए
आज गलते ग्लेशियर की तस्वीर देखकर
बिन बताये समझ गए कि
“ऐसे तो मम्मी हमारी धरती डूब जाएगी”
कितने समझदार हो तुम बेटा
अपना भविष्य ग्लोबल वार्मिंग में डूबता देख सहम गए
इस समझ तक हमको आने में कुछ सौ वर्ष लगे हैं
देखो बेटा क्या हालत है!
केरल में कैसी आफ़त है!
पर मम्मी कल फिर ऑफिस जाएगी।
फिर वैसे ही चिल्लाएगी।
और तकिये पर सर रख रात में
यही सोचती जायेगी
क्यों करते हैं हम सब ये सब
क्यों न रहें बस साथ उन्ही के
छूट जाता है जिनका साथ जब तब।
धरती पूरी पानी पानी हो गयी बेटा
मैं भी पूरी पानी पानी हो गयी बेटा
क्या दे रही हूँ तुमको
घिसते कदम और स्कूल का बस्ता
हर दिन कुछ घण्टों में फोन घुमा के
समय छह बजे से पहले खाने का वास्ता?
दादी माँ कहती थी
खाना जो प्यार से नहीं जाता
वो देह में भी नहीं लगता
भरसक तुम पतले लगते हो।
क्या कर गुजरने की छटपटाहट में बढ़े जा रही हूँ?
तुमको जी भर गले न लगाने में भी बिलबिला रही हूँ।
कभी इस पे निकलती है तो कभी उसपे ।
मुझे भी समझ नहीं आता कि भड़ास किस बात की?
पर ये जो केरल में आई बाढ़ है ना बेटा
वो मुझसे ये सब लिखा रही है।
बेमतलब पानी पैर तक आ गया है
जड़ें उखड़ रही हैं
पेड़ सर पर तैरने लगे
तिनके सा सिलेंडर बह रहा है
हम करोबार में डूब रहे हैं
बिजली काट दी गयी
न कोई सम्पर्क है न साधन
नानी से छुट्टीयों में चिट्ठी लिखने की कला भी नहीं सीख पाए
जब तक रौशनी थी कुछ बनारसी साड़ी के प्रिंट सा
हाथों पे मेहंदी लगाना सीखते रहे
पहले कलम से कॉपी पर
फिर सब बाढ़ के पानी में बह रहा है।
घर,नौकरी, पहचान, सब
बाढ़ के पानी में बह रहा है
दरअसल ये त्रासद नहीं है बेटा ,बस करवट है
ऐसी करवट तुम मत लेना।
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
LikeLike
Great going my super mom
LikeLiked by 2 people
My loving sister , your words are precious.
LikeLiked by 1 person