दुनिया में सबसे ज़्यादा रंगों को
जो समेटे वो फूल कहलाते हैं,
सखी वे अपना सौंदर्य
डाल पर छितराये
धूप की मसखरी में फलते
मिट्टी में समाते हैं।

मनमोहक पादप प्रजाति
का उद्देश्य भर लुभाना होता
तो क्या बात होती!
सखी वे इत्र में ढलकर
फ़िज़ा की जान बनने आते हैं।
पूजा की माला में
इष्ट का नाम जपने आते हैं।

यदि फेंके गए तीर्थस्थलों पर
हो जाते हैं कारखानों के
कर तब्दील अगरबत्ती में
काम देवालयों के आते हैं।
कहीं चादर कहीं चढ़ावा
जो हो धर्म जो पहनावा
वे हर रास्ते प्रभु को जाते हैं।

तू किसी धर्म का ही रहे
मैं तेरे नाम टूट जाऊँगा
बिछ जाऊँगा रास्तों में
होकर कबीर समाज का
मैं फूल हूँ मैं रंग हो जाऊँगा।

प्रज्ञा

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