आधा जला पन्ना
किताब का
रखना पड़ेगा सहेज
कई दिनों तक
अभिन्न अंग जो ठहरा
न जाने क्या बात थी
इसमें दर्ज
जो सालती रहेगी
याददाश्त के जाने तक
मुम्बई, 31 अगस्त , 2.31AM
प्रज्ञा
आधा जला पन्ना
किताब का
रखना पड़ेगा सहेज
कई दिनों तक
अभिन्न अंग जो ठहरा
न जाने क्या बात थी
इसमें दर्ज
जो सालती रहेगी
याददाश्त के जाने तक
मुम्बई, 31 अगस्त , 2.31AM
प्रज्ञा
असरदार ।
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कुछ तुम जानो कुछ हम,
मुनासिब है तेरा भूल जाना,
मगर कैसे भूलें हम,
इन अधजले,फ़टे पन्नों को,
जिसे पढ़ कभी
उछल जाते थे।
अब भी अधूरे वाक्य पूरे हो जाते हैं
जो अधजले हो गए,
मगर हम सदैव अधजले से हैं।
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वाह बेहतरीन
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