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इन रास्तों में राहत मिलती है,गहरी साँस में सुकून होता है,मंज़िल तलाशना भर भी,ज़िंदगियों का हासिल होता है।उम्र सारी कट रही सफर में नहीं किसी दर पे आराम होता हैअपने ही सुनाते हरदम कलम से यारी का यही अंजाम होता है।

नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका “शतदल” की दुनिया में।
आप सुन रहे हैं भारत का बेहतरीन ऑनलाइन रेडियो एप
कुकू एफ. एम.। रात दस बजे का अंधेरा शहर को अपनी आगोश में ले सोने चला , लेकिन दिलों में रौशनी अब भी कायम है और कायम हैं “इत्मिनान के ख़्यालत”।

एक थी सरोज और उसके कॉपी कलम की बेतरतीब बिखरी दुनिया, उसकी नादान शोख हँसी , धीरे धीरे ज़माने की जद्दोजहद में गुम हो गयी। एक अरसे से उसकी तलाश का खालीपन जब कविताओं में उभरने लगा तो उन्हें एक किनारे एक घर की तलाश हुई।

शतदल वो शय है जो उसको ढूँढता हुआ आता है उसकी बातों को अपने पन्नों में समेटता जाता है, और वो है कि मिलती नहीं हकीकत में।

सुनते हैं दास्तना-ए-शतदल

मेरा ब्लॉगिंग सफर जुलाई 2018 से शुरू हुआ उससे पहले मैं फ़ेसबुक पर और तमाम ऑनलाइन पोर्टल्स पर अपनी कविता भेजती। फिर मित्रों ने ब्लॉगिंग का सुझाव दिया जिससे रचनाएँ एकत्रित हो सकें और मेरी बात पाठकों तक एक सिरे से जाए।

चूँकि लिखना अब सीधे स्मार्ट फोन पर हो रहा है तो एक प्लेटफार्म पर उसको सहेजने के लिए वर्ड क्लाउड से सस्ता रास्ता मुझे ब्लॉग लगा। मैं ब्लॉग पर अपने जीवन से जुड़े अनुभव लिखती हूँ। कविताएँ लिखती हूँ ।

केवल लिखने और प्रशंसा के लिए मैं नहीं लिख सकती वो भाव अंदर से आना चाहिए। मेरे अंदर उस मैटर को लेकर बेचैनी होनी चाहिए और मेरे आस-पास की हर बात उस समय गौण हो जानी चाहिए। ऐसे तैयार होती है कविता । कभी दोपहर। कभी आधी रात ओर सबसे ज्यादा मैं शुक्रगुज़ार हूँ मुंबई के ट्राफिक की। जो मुंबई की घन्टों घन्टों वाली ट्रैफिक न होती तो बेस्ट बस में बैठे मेरे ब्लॉग की गाड़ी न बढ़ी होती।

कहते हैं ये शहर हमसे हमारा सुकूँन ले लेता है लेकिन बदले में देता है नाम, हुनर और कभी न समाप्त होने वाली जिजीविषा।

ये एक जारी सफर है। जब तक हूँ शतदल की यात्रा है बड़े पैमाने पर घूमना है हमें।शतदल ब्लॉग अस्तित्व में आये एक वर्ष हो गए, इसी बीच लिखते हुए धीरे-धीरे इसने शतक भर दिल भी जीते।

मई 2019 में iblogger प्रतियोगिता आयी ।मैंने हिस्सा लिया अपने अनुभव और ब्लॉग के बारे में लिखना था । सब सच कह दिया।

बनावटी भाषा किसके लिए छोड़ के जाइयेगा । धरती के दिन भी गिने चुने। अमेज़न तक जल रहा अब । यही समय है अपने मन की जीने का । जी भर के मेहनत करने का।

दुनिया में अच्छा पढ़ने लिखने वालों की कमी नहीं है, पर हम खुद को कम क्यों मानें जी । क्यों रहें जजमेंटल की अरे मैं क्या, मैं कहाँ ,मुझसे अच्छे, मैं किस क्षेत्र से। परिणाम यह हुआ की मैंने मेरी ब्लॉग के समर्थन में पहल की। कुछ लोग साथ आये उन्होंने शतदल को प्रचारित किया इस तरह सबके स्नेह से प्रतियोगिता में , शतदल ब्लॉग पांचवे स्थान पर रहा।

एक दिन शुरुआत होनी चाहिए।
जीत किसी भी बात की हो।
उसका जश्न होना चाहिए।
समझें तो जीत का स्वाद कैसा होता है ,
जीतने की मुस्कान कैसी होती है ,
ताज़गी परवान कैसे चढ़ती है!

मैं लंबा चौड़ा टेक्निकल नाम नहीं चाहती थी इसलिए प्यारा सा www.shatadal.com चयन किया।शतदल अर्थात कमल मेरी माँ सरोज के नाम का पर्यायवाची है।ब्लॉग की टैग लाइन है :

“जो मराल मोती खाते हैं ,उनको मोती मिलते हैं”।

यह पंक्ति मैंने किसी किताब में नहीं पढ़ी, पूर्णियाँ , बिहार में , घर के बाड़े में सब्जियां लगाती छाँटती मेरी दादी माँ यह हमेशा दोहराती थीं , वो मुझे यही सिखाती रहीं:

ज़िन्दगी से अपने हक में बेहतरीन माँगों तुमको वो बेहतरीन देगी।

मेरी सपनीली आँखें बेतरीन को ढूँढती हैं, मुंबई के ट्रैफिक में, सब रिश्तों में और खुद में। हम जो ढूढते हैं हमको वो ही मिलता है।जो कुछ निष्ठा से चाहते हैं वो मिलने की प्रक्रिया को सामने लाना ब्रह्मांड की प्रक्रिया पर छोड़ना होता है। ये पता होना चाहिए की हमको चाहिए क्या ।

शतदल का मुख्य उद्देश्य मेरी माँ सरोज स्मृति और दादी माँ चाँदप्रभा की यादों को सहेजना है

लिखने की आतुरता माँ से आयी, लेखन में भावनाएँ दादी के प्रेम की पिरोती हूँ। पापा का रौब कोशिकाओं में दौड़ता है, इसलिए हर पलड़े में ज़िन्दगी का बैलेंस लड़खड़ाते ही ज़ोर से टोकता है। इसी के इर्द गिर्द ज़िन्दगी चल रही। यहीं रहती हूँ मैं।

शतदल मुझे मेरे पहले ओपन माइक परफॉर्मेन्स “वर्ड्स टेल स्टोरीज़” कस्तिको स्पेस वर्सोवा लेकर गया जिसे रोशेल डीसिल्वा संचालित करती हैं, यहाँ जाने की प्रेरणा रायना पांडे ने दी, माँ की तरह रायना दी मेरे साथ थी उस दिन। वहाँ “आम का अचार ” कविता सभी को पसन्द आयी, जून 2018 को उन्नति भारद्वाज ने मुझे मुम्बई के प्रसिद्ध ओपन माइक प्लेटफॉर्म द हैबिटैट का निमंत्रण दिया। कविता “आम का अचार” के यूट्यूब प्रसारण के करीब एक वर्ष बाद अप्रैल 2019 में शगुन की कॉल आयी और कुकू एफ एम से परिचय हुआ। ब्लॉग ने एक पॉडकास्ट चैनल का अवतार लिया। अब kukufm पर शतदल इत्मिनान के ख़्यालात लिए हर बुधवार रात दस बजे श्रोताओं से मिलता है।

कामयाबी

मज़बूत नाखून से आती है
तनाव में चबाते नहीं जब।
तह लगी अलमारी में दिखती है,
कपड़ा लिये उधड़ती नहीं जब।
दिखती है बेझिझक बच्चे में
घर भर में घूमता-फिरता है ,
गिरता है , सीखता है, लिखता है!
नहीं कोई सवालिया डर उसकी आँखों में अब।
बहुत और आनी बाकी है कामयाबी
जैसे समय पर उठना सोना
खाना थोड़ा-थोड़ा बार-बार
खुद पर मेहनत अब नहीं तो कब करोगे यार!

सभी श्रोता शतदल को कीमती समय देते हैं, आप कॉमेंट सेक्शन में अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें जिससे पॉड कास्ट के स्तर को और बेहतर बनाने में मुझे सहायता होगी।शुभरात्रि, अगले बुधवार फिर मिलेंगे, शतदल को अपना प्यार देते रहें लाइक शेयर subscribe ज़रूर करें।

प्रज्ञा

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