कल मेरे फोन का लैंग्वेज मोड ग़लती से उर्दू हो गया। देख के कुछ समझ ही न आया करे तो क्या करें कैसे किस लिंक को प्रेस करने से वापिस इंग्लिश पर आएं । क्युबिकल में बैठ के घोड़ी देर मैं , दीपिका और रीता इस कारस्तानी और कॉमेडी ऑफ एररर्स पर खूब हँसे। छमाही के अन्तिम सप्ताह में वैसे भी दिमाग का दही हुआ पड़ा था तो ज़रा ज़रा सी बात पर हँसी आये जा रही थी।

खैर तो फोन का क्या किया जाए डब्बा हो गया उर्दू फॉन्ट नहीं समझ आ रहा। सामने खाना रखा, पेट मे भूख भरपूर और मूँह पर ताला बंद वाली स्थिति। कोई बोला की फलां प्रोजेक्ट में मोइज़ है उनके पास जाईये। मोइज़ खाना खाने गए थे। श्वेता ने टीम में नदीम के बारे बताया। हम दोनों उनके पास गए की भई देखो क्या कैसे क्लिक करें कौन सा लैंग्वेज का “ऑप्शन” लिखा है।

बड़े पशोपेश में नदीम बोले की वे अक्षर/(जैसे अलिफ़) भर पहचानते हैं बस। मैंने कहा ज़रा ट्राई करिये, फिर उन्होंने समझ समझ कर पहचाना और कहने लगे मेरी उर्दू टेस्ट करने कोई ड्रिल तो नहीं कर रहीं आप। मैने समझाया नहीं नहीं यह वास्तविक प्रोडक्शन आउटेज है।

इतनी देर में जोड़ जाड़ कर डेवोप्स इंजीनियर नदीम कई उर्दू शब्द समझने में कामयाब हो गए फोन का लेंग्वेज मोड उर्दू से इंग्लिश यू इस हो गया। आस पास के लोग पूरी कहानी जानने इकट्ठा हुए की क्या हुआ कैसे हुआ , मैंने चार बार एक ही बात दोहराई सबने चाव से सुनी और सुनना चाहे लेकिन बात ही बहुत छोटी थी और ज़्यादा नहीं खींची जा सकती थी।
हमारे क्यूबिकल में खुशी की लहर बहूत बेवजह दौड़ रही थी।

मैं सोची की देख लो आई. ओ. एस. डेवलपर हितेश भी उतनी ही हिंदी जनता है जितने में नाम पढ़ ले। डेवोप्स इंजीनियर नदीम उतनी ही उर्दू जानता है जितने में नाम पढ़ ले। लोग हैं की नाम बदलने से बाज न आ रहे।

27 सितम्बर 2019

डायरी

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