दीपावली के कई वाट्सप फॉरवर्ड्स के बीच मेरे कार्यालय से हिंदी में एक शुभकामना संवाद हमारे यहाँ के एक दक्षिण भारतीय टेक्निकल आर्किटेक्ट का भी था।
कल कई दिनों बाद ऑफिस गयी तो प्रसन्ना ने हँसते हुए पड़ताल की – “आई सेंट यू अ गुड हिंदी पोएम विद लॉट ऑफ एफर्ट दिस दीवाली यू डीड नॉट रेस्पांड। ”
यह एक अप्रत्याशित वाक्य था उनकी तरफ से और सुखद आश्चर्य भी , अवकाश मिलने पर मैसेज चेक किया तो गोपाल दास नीरज जी की कविता थी।
प्रसन्ना की तरफ से यह कविता शुभकामना के तौर पर आना एक अवार्ड जैसा है ।
हिंदी की एक छोटी सी सिपाही मैं भी तो हूँ जिसने अनभिज्ञ एक व्यक्ति का रुझान यूँ ही हिंदी की तरफ बढ़ाया।
कविता यहाँ साझा कर रही हूँ।
गौरतलब है कि पोस्ट एक फॉरवर्ड नहीं था ढूँढ पढ़ कर व्यक्ति ने स्वयं लगाई।
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास “नीरज”
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।