मयूर करते हैं विश्राम

सावन के आने तक

बचानी होगी ऊर्जा

पँख फैलाने तक।

मत रोको उन सपनों को

जिन्हें देखना कठिन हो,

गिरने दो ओस की बूंदें

रात निकलने तक।

कुछ मोती ,

पलकों की कोर पर ठहर जायेंगे

चमकेंगे खिलेगी धूप जब

वही सपने सच कहलायेंगे।

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