किसी आम छुट्टी के दिन की तरह उठ कर अंशुमन को साथ लिए बाज़ार निकली , वहाँ चहल पहल और कार्निवाल जैसे टेंट दिखे, गौर किया तो सरोवा स्ट्रीट कनेक्ट का बिल बोर्ड लगा था। रास्ते में मेरी मित्र अमृता अपने पति और बेटे के साथ लौट रही थीं उन्होंने दिखाया इमोन ने प्यारा छोटा सा मटका बनाया था ,वहीं पॉटरी क्राफ्ट के स्टॉल पर। घर लौट सामान रखा अंशुमन के साथ अभिज्ञान और उनके मित्र तनवीर को भी साथ लिया और शामिल हो गए सुस्ताती टहलती भीड़ में।
सरोवा स्ट्रीट कनेक्ट आज दोपहर डेढ़ बजे तक ठाकुर गाँव में छाया रहा, इस तरह के आयोजन में मुख्यतया घरों से महिलाएँ स्टॉल लगातीं हैं, हैंड क्राफ्ट का बाज़ार होता है और गुड टाइम्स की सारी ख़ूबसूरत चीज़ों का लुभावना हाट बनता है।
स्ट्रीट कनेक्ट अक्सर अब जगह-जगह महानगरों में प्रचलित हो रहा है, सुना है यहां सबसे पहले इसकी शुरुआत मुंबई- कोलाबा से हुई थी। साप्ताहिक एकरसता और अपने परिवार पड़ोस के साथ समय व्यतीत करने का अच्छा तरीका हैं ये अर्बन हाट बाजार।
गर्म जोशी से जुटते लोग, रंग बिरंगे चटख आवरण की सजावट, बीचों बीच बना मंच, वहाँ गाते थिरकते कलाकार, कभी कहार कोई सेलिब्रिटी आकर्षण का केंद्र बन कर भी आता है प्रोमोशन के लिए। छोटे बच्चों के हाथ मे रंग बिरंगे चॉक और सड़कों पर अपने मन का लिखते बनाते नन्हे हाथ।
पहुँचते ही बच्चों ने स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम खायी,और बगल के जोगर्ज़ पार्क में आराम से बैठे, खाये फिर खेलने निकल गए, टी शर्ट पर इएवेंट की स्टीकर लगाई, बचे हुए कागज़ की एरोप्लेन बनाकर उड़ाई , मैंने स्लोमो में वीडियो बनाई।थोड़ी देर में थकने के बाद बच्चों ने खुद पास्ता स्टॉल ढूँढा । तीनो मिल बांट खाये और भूख मिटाई।
मेले से लौटते तनवीर का मन हुआ वेफल हॉट चॉकलेट खाने का, दोनों मित्र साथ उस स्टॉल पर दौड़े क्योंकि अयोजन समाप्ती की घोषणा हो चुकी थी और कुछ ही देर में स्टॉल पर बिजली काट दी जाती , वेफल के लिए हड़बड़ी मच गई। पर जहाँ चाह वहाँ राह, जिनको चाहिये ही चाहिए था उनको मिल ही गया। बच्चों की पॉकेट मनी का सदुपयोग मेले में तब ही होता है जब उससे सबसे प्रिय कोई चीज़ खा लें।
हमारे लौटने के क्रम में आलोक भी लोखंडवाला में क्लास लेकर वापस लौट आये। अंशुमन और अभिज्ञान को पता नहीं था की पापा आ जाएंगे , अपने पापा को देख हमेशा ये दोनों अभिवादन में चिल्लाते और दौड़ कर जाते हैं जैसे दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना अचानक मिला है। अंशुमन के पैर तो मछली की तरह भागने लगते हैं।
आधे रास्ते जा कर अंशू, “अरे! शिट” बोलते हुए वापस मेरी तरफ आया और कुछ मेरी बैग में ढूँढने लगा। फिर पैम्फलेट से बनाई छोटी एरोप्लेन निकाल कर पापा को वापिस दिखाने गया। ” पापा , देको में मनाया , एयोप्लेन मनाया”।
नौकरी पेशा लोग एक रविवार में ही पूरे हफ्ते का जीवन ढूँढते हैं।
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