एक ज़िंदा शरीर मे किसी
भटकती आत्मा की तरह
जीना कैसे जीना होता है?
खुद को ख़त्म होते देख
कैसे बटोरते हो कटते अंग?
कैसे सड़ चुकी ऊर्जा को रोकते हो
बेलगाम आँचल की तरह
हवाओं में उड़ने से इधर उधर?

कैसे समंदर के शहर में
बर्फ होते दिल पनपने देते हो?
कैसा महसूस होता है धक्का देकर
गीली खाई खोदते जाने में
बिना किसी औजार
सुर्ख लाल रंगे नाखूनों से?

शुक्र है तुम टोकते नहीं
कंटीले कमरों की दीवारों
पर टिका देख मुझको
छोड़ देते हो मेरे हाल पर मुझको
ये भी एहसान रहा।

तुम्हें मिले प्यार से,
तुम्हारी ही कॉलर पकड़े
एक जड़े तमाचे की गूँज के साथ
अट्टाहस करेगी रखकर कमर पर हाथ
फूँकती सिगरेट और लड़खड़ाती
ज़िन्दगी जैसी लड़की
बताओ?
हर समय भाग क्यों रही है
ज़िंदगी जैसी लड़की?
क्या कसम खायी ज़िन्दगी?
किससे लिया उधार ज़िन्दगी?
ऐसी बेढंगी बैरायी हसीन
खुद का गला घोंटती
क्यों चली आयी ज़िन्दगी?

Pragya

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