चूड़ा दही खाइये, गुड़ तिलकुट भी मिलाइए, बिहार से तिलगुल मंगवाईये , दही हो टटका तो क्या कहने, और आलू गोभी तो क्या कहने, झोर बनाईये की भूजिये दीजिये, हरिहर मर्चाय भी खाइए लीजिये। 😁
आप सब से जुड़ने के लिये आज का विषय है संक्रांति, आज से पहले मैंने संक्रांत की महत्ता पर इतना रोचक और गहन अध्ययन नहीं किया था। आप ढूँढने जायेंगे तो लोगों ने कितनी प्यारी कविताएँ लिखी हैं संक्रांत से जुड़े तथ्यों पर ।
प्रस्तुत कविता में कवियत्री प्रतिभा तिवारी जी ने सम्पूर्ण त्योहार को समेट लिया है:
हर्षोल्लास,सद्दभाव,शांति
अति पावन ये दिन
देश के हर हिस्से में
रूप नाम से भिन्न
गंगा में डुबकी लगा
करते हैं स्नान
बड़े ही सम्मान से
करते दान,दक्षिणा,मान
जिसकी जो भी इच्छा है,
है जितना सामर्थ्य
आज सभी करते हैं पुण्य
पाने को परमार्थ
गुड़ तिल लड्डू
गजक, मूंगफली
उत्तरायन की हवा चल पड़ी
कहीं संक्रांति, कहीं है पोंगल
कहीं बन रही है खिचड़ी
लाल, हरी और नीली पीली
जाने कितनी रंग बिरंगी
फिरकी और पतंग माझे से
आसमान भी है अतरंगी
चारों दिशाओं में बादल जैसे
इन्द्रधनुष से हैं सतरंगी
मौसम हर पल रंग बदलता
छाई है एक अगल उमंग
ढील,छोड़, काटो और पकड़ो
दौड़ो लूटो कहे पतंग
खुशियों के इस महापर्व में
उनको भूल ना जाना जिनका
आसमान में ही है घर
हम सबकी है ज़िम्मेदारी
दोस्त हमारे हैं नभचर
सभी के बीच रहे प्यार व्यवहार
मुबारक हो मकर संक्रान्ति का त्योहार…
पौष मास अर्थात दिसम्बर जनवरी जिसे देसज में पूस भी कहते हैं, तो पूस में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है , इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति, उत्तरायण से भिन्न है।
आइये जानें भारत के विभिन्न राज्यों में इसे किस नाम से जाना जाता है:
विकपीडिया एवं अन्य इंटरनेट वेबसाइटस के अध्ययन से समझें तो
मकर संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू
ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु
उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड
माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
भोगाली बिहु : असम
शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी
खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
मकर संक्रमण : कर्नाटक
लोहड़ी : पंजाब
भारत के बाहर संक्रांति के नाम इस प्रकार हैं:
बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति
नेपाल : माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’
लाओस : पि मा लाओ
म्यांमार : थिंयान
कम्बोडिया : मोहा संगक्रान
श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल
सर्दी के समय में वातावरण के साथ-साथ शरीर का भी तापमान बहुत कम रहता हैं। कम तापमान के चलते शरीर में रोग का खतरा हमेशा बना रहता हैं। इसीलिए इन दिनों गुड़ और तिल से बने पकवान या मिष्ठान का सेवन शरूर को अंदरूनी गर्मी प्रदान करता हैं और शरीर के तापमान को संतुलित करने का कार्य करता हैं जिससे की शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का वृद्धि होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है।
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर तिलवा, लाई गुड़ से बना लड्डू, गजक, रेवड़ी आदि का खूब बनाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी परम्परा रही हैं इस पर्व के अवसर पर समूचे भारत में खास करके बड़े शहरो में बच्चो और युवाओं के बिच में पतंग उड़ाने को लेकर एक खास उत्साह रहता हैं। पतंग महोत्सव भी इसी दिन मनाई जाती हैं तथा मकर संक्रांति पतंगमहोत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं।
छायावाद के स्तम्भों में से एक महान कवि सुमित्रनंदन पंत जी ने अपनी कविता नहान में बड़ा सुंदर वर्णन किया है
छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत की “नहान”
जन पर्व मकर संक्रांति आज
उमड़ा नहान को जन समाज
गंगा तट पर सब छोड़ काज।नारी नर कई कोस पैदल
आरहे चले लो, दल के दल,
गंगा दर्शन को पुण्योज्वल!लड़के, बच्चे, बूढ़े, जवान,
रोगी, भोगी, छोटे, महान,
क्षेत्रपति, महाजन औ’ किसान।दादा, नानी, चाचा, ताई,
मौसा, फूफी, मामा, माई,
मिल ससुर, बहू, भावज, भाई।गा रहीं स्त्रियाँ मंगल कीर्तन,
भर रहे तान नव युवक मगन,
हँसते, बतलाते बालक गण।इनमें विश्वास अगाध, अटल,
इनको चाहिए प्रकाश नवल,
भर सके नया जो इनमें बल!ये छोटी बस्ती में कुछ क्षण
भर गये आज जीवन स्पंदन,
प्रिय लगता जनगण सम्मेलन
विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी (Lohri) के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से “दान का पर्व” है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है।
गोरखनाथ मन्दिर, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। बाबा गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरखनाथ मन्दिर के वर्तमान महन्त श्री बाबा योगी आदित्यनाथ जी है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ एक माह चलने वाला विशाल मेला लगता है जो ‘खिचड़ी मेला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।
महाराष्ट्र में लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं
-“लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला”
अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है:
“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।”
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल (Pongal) के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
सन्दर्भ:
बहुत ही जानकारी से भरा तथ्यात्मक असाधारण लेख। बहुत बधाई।
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Thanks a lot !!!💐
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