पहले मेरी मेज़ यूँ ही कुछ उलझे हुए माउस, की बोर्ड और लैपटॉप चार्जर की छावनी भर थी जिसे दिन ख़त्म होते खेमे में वापिस ले लिया जाता है। फिर धीरे धीरे मुझपर दीपिका कोलस्कर का प्रभाव पड़ा और मैंने रंगों को सहेजना शुरू किया।

छोटी छोटी चीज़ें जो घर के कोने कुतरे में पड़ी कुछ शोभा न पातीं और बच्चे चट से कचरा बना कर कूड़े दान लायक स्थिति में पहुंचा देते उन चीज़ों को ऑफिस की मेज़ ने घर की याद की तरह सहेजा है। कैलेंडर किसी अन्य मित्र की है, सोचती हूँ अपराजिता जी का अलबेली का बाईस्कोप वाला कैलेंडर यहाँ मंगवा लेती तो कितना अच्छा होता पर हम कुछ चीज़ों के लिए सोचते सोचते नहीं कर पाते 💁 ….

My desk 💃

Deepika’s desk ❤️

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