हंदवाड़ा में वीरगति को प्राप्त हुए एक सैनिक की नई ब्याहता विधवा की भावशून्य तस्वीर सोशल मीडिया पर घूम गयी है, इस तस्वीर में बैराग है, अफसोस है, दिशाहीनता है, मौन वार्तालाप है। मैं इस सैनिक का नाम और अधिक व्याख्या नहीं करना चाहती हूँ, दुख से सने शब्दों में मैं अपने आप से ही प्रश्न कर रही हूँ। क्या मैं इस लायक हूँ कि मेरे देश का सैनिक मेरे हँसते भविष्य के लिए अपना और अपने परिवार की आहूति दे? क्या आप इस लायक हैं? क्या आज का औसत नौजवान जो कल का अधेड़ होगा वो इस लायक है?

आप खुद सोचिये क्या ये जवान एक छिछली जनता और महिलाओं को नीचा दिखाते रहने वाली जनता के लिए मरा है सरहद पर ? इनकी मौत की इज़्ज़त रखने लायक भी नहीं हैं आज भारत मे बहुसंख्यक । ये तस्वीर इस नव ब्याहता के दुःख का प्रमाण दे रही है।

शायद ये सोच रहीं हों क्या है और किसके लिए है इनका पूरा जीवन आगे। कितने प्लानस होंगे, साथ मे क्या कुछ सोचा होगा। वैवाहिक जीवन शुरू हुआ नहीं की विधवा हो गयीं ये। सादर प्रणाम है इनकी हिम्मत को । लेकिन इनका दुख केवल यही जियेंगी कोई नहीं बाँट सकेगा और हम लोग तो भूल ही जायेंगे।

इस दौर में दुःख भी है कि अधिकांश जनता आज अच्छा साहित्य पढ़ने की कमी में मध्यमवर्गीय बौद्धिकता के शिकार हैं। सोफे पर चौड़े होकर गप्प बाजी भर से ज़्यादा कुछ नहीं करते और रस ले ले कर घटिया फॉरवर्ड भेजते रहते हैं, बिगड़ैल हिन्दू मुसलमान के नीच नीच हरकत वाले नकारात्मक वीडियो जितना हो सके बांटते रहते है। ऐसा महसूस होता है देश का सब सोना चांदी सरहद पर मर गया और जितना कचरा बुद्धि था सब देश के अंदर भर गया।

मैं ज्यादा सैनिक के मरने पर कभी नहीं लिखती क्योंकि उतना शब्द भंडार ही नहीं है मेरा की बैठ के कविता करूँ। लेकिन देश मे आम नागरिक का स्तर जैसा घटिया होता है रहा है उसको देखते हुए , बहुत दुख है कि ये सैनिक मरा।

भगवान, ये होनहार जवान बिल्कुल नहीं मरना चाहिए था। इस देश की बहुसंख्यक छिछली जनता के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दें और हम भारत के नागरिकों का जीवन ऐसा बनाने की सद्बुद्धि दे की आप जैसे सैनिकों के शहादत लायक जनता तो बनें कम से कम।

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