अपराधी पेड़ पर नहीं उगते
बचपन से तैयार किये जाते हैं
कुंठित कुपोषित मनोग्रन्थियों
से सुसज्जित समाज की
वंश बेल तले
वे पिलाये जाते हैं घूँट घृणा के
धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा रोज़-रोज़
भोलापन बालमन उसका शैशव
सब सोख लिया जाता है
स्वार्थ की अमरबेल तले।

अपराधी पेड़ पर नहीं उगते
बचपन से तैयार किये जाते हैं
कुंठित कुपोषित मनोग्रन्थियों
से सुसज्जित समाज की
वंश बेल तले
वे पिलाये जाते हैं घूँट घृणा के
धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा रोज़-रोज़
भोलापन बालमन उसका शैशव
सब सोख लिया जाता है
स्वार्थ की अमरबेल तले।
बिल्कुल सही कहा आपने
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