#SwamiVivekanandaJi
कक्षा तीन तक मैं पटना में रहती थी, महेंद्रू में मेरे घर की हॉल में सामने की खिड़की से ठीक दाईं तरफ की दीवार पर एक लम्बी आयताकार तस्वीर टँगी थी। इस लम्बी आयताकार पोस्टर के व्यक्ति गेरुए वस्त्र में थे, वे हाथ फोल्ड कर खड़े ऊपर की तरफ देखते थे। उनकी आँखों की चमक सजीव थी। वे भव्य, मोहक, आकर्षक गुरु सदृश्य लगते थे और चूँकि न मोबाइल था न डिश टी. वी. न कोई मित्र मैंने हॉल में बैठ कर घन्टों केवल उनके चेहरे को देखा था फिर मम्मी से शिकागो सम्मेलन की कहानी सुनती थी।
मेरे अवचेतन मन पर जिस व्यक्ति का इतना प्रभाव था वे स्वामी विवेकानंद थे इसका आभास अभी इस लेख को लिखते समय हो रहा है ।मुझे उनकी जीवनी, उनके बारे में कहानियां किताबें सब पढ़ना बड़ा अपना सा लगता है। वे मेरे बचपन के खालीपन का बहुत सुंदर हिस्सा हैं। आदमी को कैसा होना चाहिए , आदमी को स्वामी विवेकानंद जैसा होना चाहिए। वे भारत को सही मायने में महान बनाने का रसायन जानते थे। दंत कथाओं में वे और बाबा परमहंस जिनके भी अवतार रहे हों, हमारे लिए साधारण शब्दों में हमेशा यूथ आइकॉन रहेंगे।
एजेंडा आधारित हिन्दू धर्म की राजनीति सेकने वाले लोग आज स्वामी विवेकानंद की तस्वीर को भगवा का अगवा बनाकर बस उसका दुरुपयोग करते हैं लेकिन उनकी इस तुच्छ सोच से न हिन्दू धर्म की व्यापकता कम होती है , न सर्व धर्म सम्मत व्यवहारिकता का पाठ हमसे कोई छीन सकता है। मुझे लगता है मुझपर उनका ही प्रभाव है जो मैं सनातन धर्म की वसुधैव कुटुम्बकम नीति को समझ पाती हूँ और हिंन्दू धर्म का प्रयोग राजनैतिक हितों के लिए करने का विरोध करती हूँ।
मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो मेरे अभिभावकों ने घर पर स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष का पोस्टर बस यूँ ही डाल कर रखा था जैसे लोग मेज़ पर गुलदस्ते सजाते हैं। उनका रूप देख उनको स्मरण कर व्यक्ति सीधा खड़ा हो जाता है, युग मुद्रा में आ जाता है, नतमस्तक हो जाता है, आसपास का शोर कम हो जाता है।उनके नेत्रों को देख एक सहज समाधि में जाने का आनंद मिलता है।
यह एक ऐसा नाम है भारतीय इतिहास का जो निर्विवादित हर धर्म, हर प्रान्त, हर भाषा का आदमी हृदय से लगाये रख सकता है। उससे भी अच्छी बात यह की उनकी पूजा नहीं की जाती। स्वामी विवेकानन्द को मनुष्य मान कर उनका अनुसरण किया जाता है जिससे अपना भी कल्याण करते हैं और व्यक्तिगत कल्याण मार्ग में ही दुनिया का भी कल्याण निहित हो जाता है।
अचानक से विकास मोदनवाल जी की वाल पर स्वामी जी की पुण्यतिथि पर पोस्ट दिख गया और यह सारी बात मस्तिष्क में बहने लगी तो लिख रही हूँ।
हमारा अवचेतन मन जो ढूँढता है उसे वो ही मिलता है। आज सोचती हूँ तो सारे क्रम और घटनाएं समझ आती हैं। विवाहोपरांत और उसके बाद काफी लंबे समय तक मुझे बड़ा मलाल रहा कि एक तो इतनी लंबी मैथिल शादी और जॉब में महज़ तीन वीक की छुट्टी हम कहीं बाहर नहीं घूम पाए।
धीरे धीरे समझ आया की मैं ही कहीं जाने को आतुर नहीं थी। मुझे तो बस जो जैसे हो रहा उसी में सब ठीक लग रहा था। फिर मेरा सौभाग्य ही था की शादी के ठीक बाद कलकत्ते काली घाट जाना हुआ। माँ के दर्शन हुए। फिर इतना सुंदर समय बेलूर मठ में बीता और अनजाने मैं स्वामी जी के पुण्यतिथि के आस पास ही बेलूर मठ में थी। मुझे तो जहां जाना था ब्रह्मांड मुझे वहीं वहीं ले जाने की साजिश करता रहा है मैं नाहक ही समय को दोष देती हूँ।
एक दिन ननद सुषमा दीदी के घर गयी , क़ई किताबें निकाल कर बाहर रखीं थीं उसमें मेरी नज़र पड़ी भी तो फिर उसी छवि पर जो आठ वर्ष की आयु तक मेरे मित्र की तरह रहे थे बन्द घर में सम्बल बन कर। मैंने मेरे भांजे कौशिक से पूछा बेटा मैं ये किताबें ले लूँ। उसने सहर्ष वे किताबें मुझे दे दी।
किताबों को तमन्यता के साथ पूरा पढ़ गयी और स्वामी जी के प्रति मेरी भावना को ज्ञान से भी परिपूर्ण किया। बहुत सी बातें थीं जिसका मुझे आधा अधूरा ज्ञान था जो कोई अच्छी बात तो नहीं। जिनसे इतना प्रेम हो उनके बारे में पढ़ना उनको साधना ज़रूरी है नहीं तो सब फर्ज़ी का दिखावा है।
उन दो किताबों में से एक स्वामी जी की कहानियों की कॉमिक्स बुक थी जो मैंने अभिज्ञान अंशुमन को चाव से सुनाया। उनको भी रूचि आयी। आज उनकी पुण्यतिथि पर अचानक इतना कुछ लिख गयी।
यदि यह संस्मरण पढ़ने में अच्छा लगे तो इसमें मेरा क्या श्रेय, श्रेष्ठ पुरूष की बातें श्रेष्ठ ही होती हैं यह लेख आज स्वामी जी के श्री चरणों में, बाबा परम हँस जी के श्री चरणों मे पूजा सदृश समर्पित।
फूल मालाएं और आह्वान तो मुझसे हो नहीं पाते एक जगह बैठ सोचना पढ़ना और कुछ अनाड़ी सा लिखते रहना ही मेरी समझ से मेरी पूजा अर्चना है। मुझे दोबारा बेलूर मठ जाना है।
सोचती हूँ आज मैं भी लाइफ साइज़ पोस्टर ऑर्डर कर ही लूँ स्वामी विवेकानंद की लेकिन अभी-अभी तो मैंने बच्चों को उलझाने के लिए वर्ल्ड मैप और भारत का मानचित्र मंगाया है , मेरे घर मे जाने कौन सी जगह हो जहां स्वामी जी बस पाएं, लेकिन पोस्टर मंगाना तो है अब जब कहीं लग जायेगा पोस्टर तो बताऊंगी तस्वीर डाल के।
क्या जाने इस लेख को क्या कहा जायेगा, इस संस्मरण में तो मेरा अभी-अभी का यह समय भी घुलता जा रहा है, मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि वह क्या बात थी जिसने मुझे विषम परिस्थितियों में ऐसे अडिग रखा जैसे योगी एक पैर पर साधना में अडिग रहता है। इस क्षण मुझे यह प्रतीत हो रहा है कि मेरे व्यवहार, मेरे विचार , मेरे व्यक्तित्व का एक बड़ा हिस्सा हैं स्वामी विवेकानन्द अनजाने मैंने मेरी सारी ऊर्जा वहीं से प्राप्त की है मैंने जिस किसी भी इष्ट को प्रणाम किया हो मेरा रोम रोम स्वामी विवेकानंद को हमेशा याद करता रहा है। अपने आप को ढूँढते रहना एक सतत प्रक्रिया है , हमें लोग मिल जाते हैं , लोग छूट जाते हैं , लेकिन हम अपने आप को नहीं मिलते। फिर भी खुद को ढूंढ़ने में मुझे हमेशा अच्छे राही मिले।
रही मर लेकिन राह अमर।
एक कविता कक्षा नौ में दरभंगा हवाई अड्डा केंद्रीय विद्यालय में रहते हुए पढ़ी थी, जिस जिस से पथ पर स्नेह मिला उस उस राही को धन्यवाद।
यदि हम किसी को आकर्षक लगते हैं यदि हमें कोई आकर्षक लगता तो मान कर चलिये की कोई आकर्षण नहीं ढूँढ रहा सब अपने आप को खोज रहे हैं।
कोई इष्ट एक ऐसी छवि जो चट्टान सी अडिग हो उसे साधना अपने आप तक पहुंचने की एक सीढ़ी हो सकती है। मेरी दादी माँ मेरे जीवन में ऐसी दूसरी शिला थीं, जिनका प्रेम शिला लेख बन कर मेरे हृदय में इस जीवन में अंकित हो गया है और जबकी वे भौतिक रूप में नहीं हैं मैं उन्हें कभी छोटी दादी के चेहरे में ढूँढती हूँ कभी आशू भैया की बेटी आशी के चेहरे में। मेरी खोज बेवजह तो नहीं यूँ स्वामी जी से जुड़ी बातें मिलते जाना इसका इशारा है कि मेरी खोज की दिशा सही है। हो सकता है जीवन के बहाव के साथ ही बढ़ते रहने के मेरे सारे निर्णय भी सही ही हों।
मुझे सुखी सम्पन्न जीवन देने के लिए पहले मेरे पापा को फिर ईश्वर को धन्यवाद।
स्वामी विवेकानंद जी आपको सादर प्रणाम मेरे जीवन का आधार सही मायने में आप ही हैं।
आज सुबह आर्ट ऑफ लिविंग के हैप्पीनेस प्रोग्राम से थ्री स्टेज प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया करने के उपरांत जब अंदर का सारा शोर समाप्त हुआ, दिमाग शान्त हुआ है तब जाकर भीतर से यह सारी बातें निकली हैं।
Pragya Mishra
भाषा पर आपकी पकड़ अच्छी है और संस्मरण तो आप ऐसे लिखती हैं जैसे अतीत के गर्भ में गोता लगाकर कोई मोती निकाला हो।
सतत लेखन के लिए शुभकामनाएं।
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जोशी जी इतनी उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए सादर धन्यवाद
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