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रंगों औऱ फूलों की बात अक्सर कोमल प्रेम रस की कविताओं में ज़्यादा जचती है। लेकिन कभी-कभी हमारा परिवेश, आस पास होती घटनाएं, सामाजिक उथल पुथल , राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर संवेदनाओं को झकझोरते समाचार हमको व्यक्तिगत प्रेम से आगे आकर “प्रेम” शब्द की महत्ता को बचाने के लिए भी रंगों औऱ फूलों की तरफ ही मोड़ता है।

मैं भी आप को तरह चुप चाप जो घटित हो रहा है उसे देख रही हूँ । दो बच्चे , घर और नौकरी वाले की जीवन की शांति से छेड़ छाड़ करना सच में मेरा भी मन नहीं करता किसी भी तरह की क्रांति का हिस्सा बनना। फिर भी कई बार करवट करवट नींद नहीं आती। बुरा हो स्मार्ट फोन का सारी दुनिया का संज्ञान देके ही छोड़ता है। सोचने पर मजबूर करता है। सवाल उठते हैं जिन्हें आप माँ बाप पति और किसी घर वाले से नहीं उठा सकते, ये अभी बहुत दूर की बात है , वो आपके खाना पकाने की स्किल और किचन सम्भालने की स्किल लर धोपिया देंगे।

उस समय साथ देती हैं कमरे की धीमी रौशनी घूमता पंखा और अचानक उठ कर स्मार्ट फोन की नोट पैड पर छपती कविताएँ।

आज की दोनों कविताएँ “रंग” और “फूल” का ताल्लुक हमारी आम जिंदगियों में धीरे-धीरे बिना दस्तक प्रवेश कर चुकी विषमताओं से है वे सामाजिक, राजनीतिक , परिवारिक तीनों स्तर पर होती हैं। हम समझते हैं कि यह जो हो रहा वह गलत है लेकिन विरोध करने के लिए न तो सही शब्द मिल रहा होता है न हिम्मत बस सहते रहते हैं और सर्वाइवल के लिए खुद को उसी घेरे में ले आते हैं। वो घेरा , जिसपर जवानी के जोश में तंज कसा करते थे आज घर बना रहते हैं।

पहली कविता है “पुष्प”, आप शतदल पर प्रज्ञा के साथ हैं साथ है भारत का बेहतरीन ऑनलाइन रेडियो कुकू एफ एम ।

संसार के सारे रंग समेट कर
विविध सुमन पवित्र पुष्प हो जाते हैं
सखी वे अपना सौंदर्य
डाली पर छितराये
धूप की मसखरी में फलते
मिट्टी में समा जाते हैं।

मनमोहक पादप प्रजाति
का उद्देश्य भर लुभाना होता
तो क्या बात होती!
सखी वे इत्र में ढलकर
फ़िज़ा की जान बनने आते हैं।
पूजा की माला में
इष्ट का नाम जपने आते हैं।

यदि फेंके गए तीरस्थलों पर
हो जाते हैं कारखानों के
कर तब्दील अगरबत्ती में
काम देवालयों के आते हैं।
कहीं चादर कहीं चढ़ावा
जो हो धर्म जो पहनावा
वे हर रास्ते प्रभु को जाते हैं।

तू किसी धर्म का ही रहे
मैं तेरे नाम टूट जाऊँगा
बिछ जाऊँगा रास्तों में
होकर कबीर समाज का
मैं फूल हूँ मैं रंग हो जाऊँगा।

आगे सुनते हैं कविता – रंग -रंगों के बदलते तेवर पर।

रंग

रंगों के प्रयोग में बहुत भेद होते हैं
रंगों के दुरुपयोग से मतभेद होते हैं
पतित हुआ समाज जहां रंगभेद करते हैं
उत्थित हुआ समाज जब रंग प्रेम भरते हैं

कैसे निर्णय लिया मनुष्य ने
हरा क्या इंगित करता है?
कैसे निर्णय लिया मनुष्य ने
केसरिया क्या दम भरता है?
किसी का सफेद नए जीवन का आरंभ
कहीं मृत्यु और शोक का रंग बनता है!

तुम कैसे तय कर देते हो
बेटी है तो सब गुलाबी ही होना चाहिये
तुम कैसे तय कर देते हो
बेटा है तो बस नीला खरीदना चाहिए
खिलौनों, टॉफियों , कपड़ों को छोड़ा नहीं
एक पिंक टैक्स भी होना चाहिए।

किसने भर दिया दिमाग में?
रंग गोरा आत्म-विश्वास का प्रतीक है
किसने भर दिया दिमाग में?
श्याम वर्ण को सहानुभूति की तस्दीक है।
हो कोई शहरी या हो गाँव वाला
बोले खूब स्मार्ट है तेरा छोटा बेटा गोरा वाला
कैसे रह गया दबे रंग का लड़का तेरा बड़ा वाला

विविधता का संदेश बस भाषण में देंगे
प्राकृतिक फूल बस बगीचे में अच्छे दिखेंगे
उनकी मेज़ पर ताज़ा प्लास्टिकी फूल सजाओ
वहाँ चिर चमकती एक सिलिकन बूँद दिखाओ।

देवी जी एक दिन रैली में माँग लाल सजाती हैं,
देवी जी प्रान्त में हरी चूड़ियाँ पहन बतियाती हैं!
देवी जी एक दिन बिना सिंदूर स्लेटी साड़ी का प्लान बनाती हैं
चुनावी दाँव पेंच के भी अपने रंग हैं देवी जी सब आज़माती है।

देखिए रंग किस तरह मनोवैज्ञानिक छल करता है
देखिए रंग किस तरह हम पर असर करता है
फ्लैशी चटख इश्तिहार और पैकेजिंग के ज़ोर पर
आज वैज्ञानिक तरीके से बड़ा दुकानदार ठग करता है
आदमी भर रंगों का प्यादा है इसलिए रंग रोगन पर मरता है

रंग है रंग है बोलकर थोथी सकारात्मकता कब तक गाईयेगा
अपने अंदर का कालापन बस सच के कैनवास पर पाइयेगा।

*प्रज्ञा* *17 Aug 2018*

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