इस कविता से मेरा परिचय अप्रैल 2019 के बाद हुआ । फेसबुक पर ही मिले एक मित्र ने मेरी रोज़मर्रा की ऑफिस की आपाधापी और उसके बीच हिंदी में आगे पढ़ने की ललक बुझते जाने पर मुझे सुनाया था। जितनी बार पढ़ती हूँ जोश से भर जाती हूँ। देश का हर युवा सपना देखता है। हम में से कुछ देश के लिए भी सपने देखते हैं। बच्चे लिखते हैं “मेरे सपनों का भारत कैसा हो” ।

आखिर हम सपने क्यों न देखें इस देश में जीने के लिए हम अपनी संताने छोड़ जाएंगे। हम कैसे भारत में अपनी संतान छोड़ कर जाना चाहते हैं? क्या हमने जो दौर देखा वह अच्छा था? क्या आने वाला दौर हमारी पसंद का होने वाला है? सारी बातों का हल एल सपना देखने से शुरू होता है। 9 सितंबर को अवतार सिंह पाश का जन्मदिन है। किसी क्रांतिकारी कवि के जन्मदिन का सबसे अच्छा तोहफा होगा उसकी कविता को मुँह जबानी याद कर रोज़ पढ़ा जाना जैसे पढ़ते हैं हम हनुमान चालीसा। तो पढ़िए , आइये लाइव 9 सितंबर को हर कोई अपने पेज से अपने अंदाज़ में अपनी आवाज़ में पाश की कविता पढ़ते हुए। जड़ हो रहा है भारत इसकी मिट्टी को खाद पानी की ज़रूरत है। इस ज़रूरत को सुनिए। यह कविता आप भी पढ़िए।

सबसे खतरनाक होता है
– अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना, बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना, बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना, बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना, बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक्त निकाल लेना, बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता

सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नजर में रुकी होती है
सबसे खतरनाक वो आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दोहराव के उलटफेर में खो जाती है

सबसे खतरनाक वो चांद होता है
जो हर क़त्ल, हर कांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है

सबसे खतरनाक वो गीत होता है
आपके कानों तक पहुंचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़
हमेशा के अंधेरे बंद दरवाजों-चौखटों पर चिपक जाते हैं

सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

आवत सिंह “पाश”

तस्वीर – साभार विकिपीडिया वेबसाइट
कविता -साभार ललनटॉप वेबसाइट
नीलेश मिश्र की आवाज़ में काव्य पाठ – https://youtu.be/7LqGxiQ5psc