तुमसे बात करने का एहसास
बड़ा वैसा सा होता है
जानते हो कैसा सा होता है
जैसे ताज़ी बिछाई सफेद चादर हो
थकी लेटी लिपट कर तुम्हारे
बालों में उंगलियाँ फिराती सी
दिन भर का कहना सुनना सुनाती सी
बाज़ुओं पे गुदगुदा कर
साथ ज़रा सा हँसी वसी,
घेर कर, इधर सुनो, बोलकर
तुम्हारे सीने में सिमटी सी।

अब कहो! कैसे हो बात ऐसे में,
चलते-फिरते बीच सड़क पर,
सरे आम चेहरा राज़ उगल आए तो?
दुनिया वाले बातें बनायें तो?
कौन सा आओगे मुझे बचाओगे

कर पाओगे ऐलान-ए-मोब्बत कि

“मोहतरमा मेरे खयालों में थीं
इन्हें बख्श दीजिये!
इनके चेहरे से टपकती गुलाबी हया
मेरे घर की रैशनी है
मेरा घर जगमगाने दीजिये ।”

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