बंद पटल पर घास के मैदान देखे, पहाड़ भी दिखे , देवदार के जंगल देखे , प्रकृति ही प्रकृति थी। लगा कि कोशिकाएं इतनी पुरानी हैं कि पेड़ों पहाड़ों से यादें साझा करती हैं। मन तो जैसे सालों पुरानी बहती बूढ़ी नदी के किनारे लगता है जिसके पास जीवन सँवारने के टोटके हैं, जो सदियों से कितने पाषाणों का दंभ केवल गतिमान रहकर तोड़ती आयी है। दूर पर्वत पर ले गया क्षण, वहाँ से छोटी-छोटी नाव देखी, सैलानी दिखे। सारा दृश्य कमरे में बैठे चकित करता गया एक भूरी स्पाइरल सी गुफ़ा बनती गयी, अनुभव करते खुद को बहुत पुराने किसी पर्वत में समाहित होते देखा।
Pragya
सुंदर दृश्य चित्रण किया है 👌🏼👌🏼😊
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