
प्रेम मनक संगीत छै,
प्रसन्नता छै,
एकटा भावना
जकर उत्पन्न भेलाक बाद
कोनो प्राणी के कष्ट देब’ मे
कष्ट बुझाइत अछि
प्रेम कला अछि,
साधना अछि ,
मनक अवस्था
जकरा प्राप्त भेलाक बाद
क्रोधक तड़ित
मधुर स्मित बनि बहि जाइत अछि
प्रेम देहक आकांक्षा नहि अछि,
प्रेम मिलनक आकांक्षा अछि
मिलन हुनकर जिनकर आत्मा
एक दोसरा सँ प्रेम मे अछि
सृष्टि के प्रारंभ सँ।
प्रज्ञा मिश्र 31-अगस्त 2020
© http://www.shatadal.com
Beautiful!
LikeLiked by 1 person
प्रणाम पापा 😊
LikeLike
Good expression. Keep up.
LikeLiked by 1 person