आज 2020 में शरद पूर्णीमा की रात है। आसमान में चाँद है, बगल में अडिग प्रहरी तारा, ठीक निश्चित दूरी पर। घर के सामने की सड़क पर चलने वाली गाड़ी के साथ चाँद चला भी जाता है और सड़क किनारे कुर्सी पर मुझे बैठा देख रुक भी जाता है। मैं चाँदनी में नहा रही हूँ, साथ एक नीम का पेड़ और एक शमी का पेड़ भी नहा रहे।
सारी लाइटें बन्द हैं। एक पक्के मकान की रौशन दान से बेबी पिंक दीवार, ग्रिल की ओट लेकर झाँक रही है। वो मुझे जता रही है कि उसकी मर्करी का उजाला तेज़ है मेरी फीकी चाँदनी से। या शायद वो मुझसे रश्क़ कर रही हो।
पर ये मैं कैसे तय कर लूँ कि उसने सोच लिया मेरे हिस्से की चाँदनी फीकी होगी, क्या ये मेरा ही प्रतिबिंब नहीं होगा।
झींगुर की आवाज़ है चारों तरफ। सारे झींगुर बातें कर रहे हैं या शायद कोई गाना गा रहे हैं, उनकी आवाज़ में लय है जो किसी कार के गुज़रने से भंग हुआ। तेज़ रौशनी चाँदनी में व्यवधान बन गयी।
नीम का पेड़ अपनी परछांयी से पूछ रहा है कि चाँदनी का बिछौना कैसा है, बड़ा नर्म चांदी की वर्क से मुलायम होगा। चाँदनी में जन्मीं नीम की परछाईं कह रही है ये माँ की गोदी जैसा है। नीम का खड़ा पेड़ उत्साहित है, उसे नर्म ठंढी फुहारों का अनुभव है लेकिन मृत्यु पर्यंत वो शैया नहीं धरेगा इसलिए उसे सुख का अनुभव हो रहा है कि उसकी परछाईं ने ये अनुभव जिये। कल सुबह ये उसकी याद का हिस्सा होंगे।
Pragya Mishra
30/10/2020
Outstanding 😍😍😍
LikeLiked by 1 person
Thanks 💙
LikeLike
बहुत सुंदर
LikeLiked by 1 person