सनमसरापा तुम्हीको देखा
अपने शाह से ख्यालों में बात चीत में ख़ुसरो पूछते हैं
“Guftam tareeq-e-‘ashiqan”
What is the way of lovers?
प्रेमियों का कर्म क्या है?
जवाब आता है:
gufta wafadari buwad”
Loyalty Forever.
स्थित निष्ठ।
फिर ख़ुसरोे गुज़ारिश करते हैं
Guftam makun jaur o jafa
“Then do not be cruel and wicked”
तो फिर क्रूर न बनें।
निज़ाम कहते हैं
“gufta ke iin kar-e-man ast”
That is my job.
यही मेरा काम है.
तत्सम में ईश्वर नहीं मिल रहे थोड़ा बनावटी पन मिल रहा है जैसे कि ईश्वर पाने की चाह बजाय प्रशंसा पाने की चाह अधिक होना , वहीं एक दास्तानगो की खुसरो के लिए कही दीवनगी में आँखें बंद होकर इबादत साकार हो रही है। लोग झूम कर तालियाँ बजा रहे हैं मन की डोर में कुछ ढील मिल रही है और वे गा गा के साथ उड़ने लग रहे हैं।
किंचित खोज अपने आप में रूढ़ नहीं होना चाहती इसलिए वो रूढ़ियों से विलुप्त हो रही है। पर क्या करें देश रूढ़ हो रहा है। समाज रूढ़ हो रहा है। खोजी विलुप्त हो रहें हैं।ये हमारे हाथों में नहीं।
आज रंग है माँ
आज रंग है।
किसी में है कोई खुशनुमायी
किसी में है कोई दिलरुबाई
मगर ब-ओ-साफ़-ए-किब्रिआयी
सनम सरापा तुम्ही को देखा।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी
सखी री महबूबे इलाही
ऐसो रंग नहीं देखी
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी
सखी री महबूबे इलाही
ऐसो रंग नहीं देखी।
ख़ुसरो #दस्तानगोअंकित #वैलेन्टाईनसन्देश
प्रेम युगों युगों से दुनिया की सबसे सच्ची ज़बान रहा है, दादी माँ के अंतिम दिनों में बेल व्यू में जब वो कैंसर से अंतिम लड़ाई लड़ रहीं थीं 2009 में मैं उनसे मिलने गयी थी। मैं भी तब प्रेम में थी। मैने उनको आईपॉड पर मेरे पसंदीदा सूफ़ी गीत सुनाए थे और वो कहने लगीं , बाह गे कतेक नीक छौ ई सब त हम कहियो नय सुनलियो। उन्होंने आँख बंद कर के सुना था।
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराये नैना बनाये बतिया
के ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ
न लेहो काहे लगाये छतियाँ
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़
वरोज़-ए-वसलत चूँ उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
यकायक अज़ दिल दो चश्म-ए-जादू
ब-सद फ़रेबम बवुर्द-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाये
पियारे पी को हमारी बतियाँ
चूँ शम्म-ए-सोज़ाँ, चूँ ज़र्रा हैराँ
हमेशा गिरियाँ, ब-इश्क़ आँ माह
न नींद नैना, न अंग चैना
न आप ही आवें, न भेजें पतियाँ
बहक्के रोजे विसाल-ए-दिल्बर
कि दाद मारा गरीब खुसरो
सपेट मन के बराय राखूं
जो जाए पाऊं पिया के ख़तियां
अमीर खुसरो