श्रेष्ठ रचनाकार ओम प्रभाकर जी को अंतिम प्रणाम, श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत हैं उनके कुछ नवगीत कविताकोष के वेबसाइट से, मुझे आपके बारे में आदरणीया शांति सुमन जी जे वाल पोस्ट से जानकारी मिली, आपकी मृत्यु हिंदी नवगीत विधा के लिए अपूरणीय क्षति है, आपका विपुल रचना संसार हिंदी साहित्य के लिए आजीवन प्रेरणा स्त्रोत रहेगा। सुंदर शब्दों की बहती कलकल नदी पाठक की श्रांत आत्मा को तृप्त करती रहेगी🙏

पूरा नाम – डॉ ओमनारायण अवस्थी
उपनाम ओम प्रभाकर
जन्म 05 अगस्त 1941
जन्म स्थान भिण्ड, मध्य प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ- पुष्पचरित (गीत-संग्रह), कंकाल-राग (मुक्त-छंद की कविताएँ) विविधनवगीत-संग्रह ’कविता-64’ का सम्पादन। ’शब्द’ पत्रिका का सम्पादन।

नवगीत-

🔘वहीं से

हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगें
देश के बंजर समय के
बाँझपन में
याकि अपनी लालसाओं के
अंधेरे सघन वन में

या अगर हैं
परिस्थितियों की तलहटी में
तो वहीं से बादलों के रूप में
ऊपर उठेंगे
हम जहाँ हैं वहीं से
आगे बढे़ंगे

यह हमारी नियति है
चलना पडे़गा
रात में दीपक
दिवस में सूर्य बन जलना पडे़गा

जो लडा़ई पूर्वजों ने छोड़ दी थी
हम लडे़ंगे
हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगे

🔘 हाथों का उठना

हाथों का उठना
कँपना
गिर जाना
कितने दिन चलेगा ?

कितने दिन और सहेंगे
वे कब चीत्‍कार करेंगे
कब तक होंगे वे तैयार
कब तक हुँकार भरेंगे ?

क़दमों का उठते-
उठते रूक जाना
कितने दिन और चलेगा ?

दरवाज़ों को खुलना है
गिरना है दीवारों को
लेकिन
कितने दिन तक और
चलना है अतिचारों को ?

आँखों का उठना
झुकना
मुँद जाना
कितने दिन और चलेगा ?

🔘 यात्रा के बाद भी
यात्रा के बाद भी
पथ साथ रहते हैं।
हमारे साथ रहते हैं।

खेत खम्भे-तार
सहसा टूट जाते हैं,
हमारे साथ के सब लोग
हमसे छूट जाते हैं,

मगर
फिर भी
हमारी बाँह-गर्दन-पीठ को
छूते
गरम दो हाथ रहते हैं।

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