कोई हंगामा नहीं है। खुश रहने की कोशिश है क्योंकि हर घर में बच्चे हैं। बच्चे, दुनिया के भावी कर्णधार, भविष्य के लिये वर्तमान का सुरक्षित संदेश। उनको खुश रखने के लिए खुद भी खुश रहना है। हमें मिलकर ऐसा महसूस करना है जैसे कुछ हुआ ही नहीं। जाने ऐसा करना ज़रूरी है भी या नहीं। कंधे के एक तरफ मन रुंआसा हुआ जाता है, दूसरी तरफ किसी को देख कर मुस्कराता है। किसी का पति , किसी के पापा, किसी का भाई, किसी की मम्मी, किसी का सब कुछ होस्पिटलाइज़ है, कोविड ग्रस्त या कोमॉरबिड है। पर त्यौहार भी तो है। घर के एक कोने ने घर के दूसरे कोने के लिए पकवान बनाये हैं, कोने कोने से खुशी की गुंजाइश बचा कर रखी जा रही है। यही एक रास्ता बचा है हम सबके पास, सभ्यता की डोर पकड़े रहने का। कोरोना के साथ ही जीना है। ये कहीं नहीं जाएगा।
मास्क, सेन्टाइज़र, दो गज़ दूरी हमारे समय का सच है। बसंत आगमन, ऋतुराज के स्वप्न और कोमल कांत पदावली का पालना हमारे समय का सच नहीं है, यह गीत नाद के विषय भर हैं जिनका होना किसी कविता के लिखे जाने भर आवश्यक रह गया है। जो कोमलता पढ़ी जाती है वो दिखायी क्यों नहीं देती। जिस उल्लास का मंचन हो रहा है वो मेरे भीतर क्यों नहीं है। मैं खुश हूँ या मेरे चेहरे पर मोबाइल में तस्वीर लेने योग्य एक मुस्कान चस्पा दी है मैने।
सवालों का बवंडर बस मेरे ही सिरहाने नहीं है, देखा है रात रात भर आप भी जागते हैं, गहरी साँस लेते हैं फिर पकवान बनाने में जुट जाते हैं। उत्साह है तो जीवन है, जीवन है तो उत्साह है लेकिन कौन किसका साथ पहले छोड़ेगा, ये देखने वाली बात होगी।
जब सारे रस सूख चुके होंगे तब हमें लगेगा कि रंगोत्सव है तो सही, यही बचाएगा हमें। रंग करेंगे अवसाद मुक्क्त , अपने घर कमरे से धकेल देंगे अबीर से भरी किसी थाल पर उड़ेल देगी होली हमें। सोने की थाल बहुत बड़ी , रंग भरे मटके, गोलाकार आंगन । गुजिया भर भर कड़ाह ,सजे हुए गेंदा फूल की झालर और ऑर्किड का गार्डन , रंग, पिचकारी, बच्चे, किलकारी, लोगों की कतार बंटते हुए स्वादिष्ट भोजन परसन ले कर खाने वाले, परोस परोस खिलाने वाले। ऋतुराज! तुम बीता वक़्क्त किसी एलबम में बस दिखाने के लिए ही एक बार अपने साथ ले आओ। हम वो एलबम देख कर जी लेंगे।
आज सुबह कमरे में अन्यमनस्क सी पड़ी थी, जाने किन बातों की एंटीबॉयोटिक्स के बाद सुबह थोड़ी राहत मिली। क्या पता पेट में कौन सी गटफीलिंग घर कर गयी है या कि कोरोना का डर या की सब छूटने की कपोल कल्पनाएं , सब मनगढ़ंत। सुबह आराम हुआ तो कमरे में लेटे लेटे केनवा पर डिज़ाइन बनाये होली का पॉडकास्ट कुकू एफ एम और यूट्यूब पर डाली। बतौर शुभकामना संदेश भेजा। खुद को समेट कर जब अच्छा लगा तो मैक्रोनी बनाई।
यूँ तो कटहल की सब्ज़ी बनती , पुए बनते, खीर , पूड़ी और दही बड़े पर किसी बात का मन न हुआ। हर साल तो सब करती थी मैं।
अंशु की आंटी आयीं थीं आज, वो गुलाब के गमले को हिलाडुला कर ऐसे पत्ते छाँट रहीं थीं जैसे कोई बच्चे के बाल बनाता है । बच्चे अपने पापा के साथ थोड़ा एहतियात लेकर होली महसूस करने नीचे उतरे थे । मैं भी कोई दस मिनट के लिए अपनी सोसायटी में उतरी थी। गुलाल की खुशबू दूर दूर तक नहीं थी। सेन्टाइज़्ड लिफ़्ट की गंध पसरी थी। नीचे पहुंची तो पता चला एक पहचान के व्यक्ति को हॉस्पिटल लेकर गए इसलिए ताज़ा सेन्टाइज़ेशन रहा होगा। नीचे बहुत कम लोग दिखे। स्वभाविक है।
महाराष्ट्र में कोविड के बढ़ते केस देखते हुए सभी एहतियात ले रहे। कुछ लोग जो नीचे मिले वो शायद सिर्फ इसलिए आए थे कि विपरीत दिनों का कोई असर बच्चों के नैसर्गिक विकास में न पड़े।उनको कोरोना के भय से मुक्क्त अपने त्योहार जीने का अवसर मिले। क़ई दिनों बाद तेजल और कविता से भेट हुई।
दोपहर बाद ननद ने बुला लिया , उनके यहाँ आज की सारी शाम बीती, बच्चों की अच्छी आउटिंग हो गयी। वे इतने समय से मुम्बई में है ,सालों बाद पहली बार उनके घर जाना हुआ।
जिन पकवानों को इस साल पकाने की कसर रह गयी वह रिश्तेदारी की आव भगत में पूरी हो गयी। मैने सोनी जी के छोटे बेटे विवान के साथ तस्वीर ली। शाम की अबीर के बाद एक ग्रुप फ़ोटो भी।
Pragya Mishra
29.03.2021