जानते हो आज की शाम बहुत ऑर्डिनरी थी। उसको किसी ने देखा भी नहीं। न कोई जोड़ा उसके आगे बैठा न कोई कविता उसके नाम लिखी गयी और न उसके हवाले से कोई गीत गाये गए। फिर भी शाम अपने समय से चुप चाप आयी, छटा बिखेरी मुस्कराई और चली गयी। उसे अपने सुख दुख और महत्त्व के साक्षी नहीं चाहिये। वो आप ही अपना प्रमाण है। घटित होती है और बीत जाती है नए दिन की आशा का संकेत बन कर। Pragya Mishra Quotes
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