अंशुमन और अभिज्ञान के लिए दिल्ली से सोमा और सोना दीदी की राखी आयी, वे दोनों मेरी जैधी लगेंगी। रोसड़ा बिहार से छोटी दीदी और runna दीदी की राखियां आयीं, दोनों मेरी ननद किरण दीदी की बेटियां हैं। आराधना पिछले तीन वर्षों से यहीं थी यह पहली बार है कि घर से पढ़ाई और कॉलेज बंदी के कारण वह रोसड़ा है और हम सब स्वाभाविक रूप से उसे बहुत याद कर रहे।

पूना से , अनिका की राखी, अनिका के पापा यानी आलोक जी के साढ़ू भाई राजन जी इंडिया पोस्ट से मेहनत कर के 31 को ही भेजे दिए थे।

लेकिन थेथर भारतीय डाक विभाग न पूर्णियाँ पहुँचाया, न यू पी में आशू भैया के घर, न तो मुम्बई। अब से अमेज़न से ही राखी भी भेजना तय हो गया है, अमेज़न लोग तो पुलिया पार कर के , मंदिर के कात वाली गली ढूँढ के कोई भी समान कुशहर गाम में भी दे देते हैं, भले रस्ता पूछ पूछ के हल्कान काहे न होना पड़े।

ऐसे में अनिका की मम्मी , यानी मेरी बहन ईशा बोलीं , राखी तो ले लेना। हमने ले ली, लेकिन भारतीय डाक पर बड़ा गुस्सा आया क़ई बार राखी गुमायी है।

जैधी सोना पूना में मेडिकल कर रही है, एग्ज़ाम है उसका , खत्म होगा तो मिलने जाएंगे।

सोमा का ब्याह सहरसा हुआ वह आजकल ससुराल में है , नाती अन्वित के साथ उसके दादा दादी आनंद विभोर फोटो भेजती रहती है।

रोसड़ा से रवीश बाबू (किरण दीदी के बेटे)और दरभंगा से आदित्य बाबू (गीता दीदी के बड़े बेटे)साथ मिलकर सहरसा सोमा दीदी से राखी बंधवाने गए।

चारों बहन सुषमा दीदी, विभा दीदी, किरण दीदी, गीता दीदी की राखी आलोक जी ने पहनी।

मैंने मेरे चचेरे भाई , छोटे पापा के बेटे संदीप झा और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती निशा भाभी को सम्बोधित करते हुए पत्र लिखा। पत्र में नवम्बर 2020 में पूर्णियाँ यात्रा में किस किस प्रकार दादी माँ के समय की सभी बातों को याद किया यह लिखा। मेरे भाई बहन ही बचपन की सघन अनुभूतियों और चन्द्रालय का मर्म समझेंगे।

जैसे कुशहर के पुराने घर को तोड़ कर जब नया घर बन रहा था तब आलोक और उनके भाई बहन जो महसूस कर रहे थे वह मेरी अनुभूति का हिस्सा नहीं।

मैंने कभी पढ़ा था अपने सगे या चेचेरे ममेरे भाई बहन सब से मिल बना कर रखना चाहिये, वे बचपन का दस्तावेज़ होते हैं, एक जीती जागती एलबम उनको आपके जीवन की ऐसी ऐसी घटनाएं याद रह सकती हैं जिनपर साथ मिलकर बातें करना हँसना विरेचन का काम करता है।

दादा जी को बड़े दिनों तक उनकी मेमरी बहन की राखी आती रही। वो बहुत खुश होते थे।

दादी माँ सुखसेना जा कर भी बांधती या तारा दादा, या अरुण अंकल के पापा, मुन्ना अंकल के पापा, नटवर अंकल के पापा कभी कभी संयोग से आ जाते थे।

इलू का फ़ोन आज पूना से आ गया, तस्वीर भी आ गयी, तस्वीर में गुनगुन है, टीटू भैया हैं, इलू है, बढ़ियाँ कैमरा और हुनर से ली हुई भैया की कलाई पर राखी है। तस्वीर सबसे अच्छी टीटू भैया लेते हैं। किसी भी मोमेंट की लें तस्वीर टाइम केपसूल होकर अपने समय को बताने लगती है।

मै दसवीं तक दरभंगा में मणिकांत अंकल के बेटों भोला और शांति बाबू को राखी बांधती थी। भोला भाई अल्पायु रहे। शांति बाबू आगे बनारस पढ़े और पंडित की पढ़ाई कर के आज भारतीय विधि विधान में पारंगत हैं। उनको राखी पर अभी मेसेज करना है।

शेफ कुणाल तीन वर्षों तक मेरे फ्लोर पर फ्लैट नम्बर छह सौ एक मे रहे, राखी पर ज़रूर रहते राखी बंधवा कर जाते, एक राखी पर अंग्रेज़ी में लिखी हिन्दू माइथोलॉजी की ‘राम’ भेंट कर गए, एक वर्ष ‘सीता’ भेंट कर गए, एक वर्ष ‘एक मोटिवेशनल किताब’। अब कुणाल यहाँ नहीं रहते उनको इंस्टाग्राम पर ही बधाई देने की परिपाटी है जहां उनके डिज़ायनर खानों के चित्र लगते हैं।

पापा के मित्र कृष्ण कुमार अंकल और उनके बच्चे मूर्ति दीदी(स्निग्धा) और शिशु(सौरभ) भैया भी याद हैं मुझे मैंने दरभंगा में रहते शिशु भैया को हर साल राखी बांधी और भाई दूज भी मनाया। सौरभ भैया से हाल ही में मसेंजर पर संवाद हुआ था। उन्होंने बताया कि उन्हें प्रभात चाचा यानी मेरे पापा की RJ M 7610 मोटर साइकिल का नम्बर तक याद है। हम सब उस दौर में बहुत मिलते जुलते थे औऱ सभी त्योहार में साथ रहते थे। उनकी अंग्रेज़ी शानदार है , 1998 में भी थी। उस दिन उनके जन्मदिन पर मैंने बड़े ही तोड़े मोड अंग्रेज़ी में देरी वाला जन्मदिनबधाई दिया था , तब उन्होंने ही कहा था “Belated , belated happy birthday , ऐसे बोलते हैं।”

संजू दीदी और उनके छोटे भाई भी याद आते हैं, वे सब भी रक्षा बंधन के साथी थे। मैंने संजू दीदी।के हाथ की आलू चने की सब्ज़ी और पूरियां खायीं हैं राखी पर। वो जाने कब से खाना बनाती थी।

सब यादों का पिटारा है। बहुत परते हैं। हर परत में कितने लोग हैं। हम न शहर में हैं । न कस्बे में , न गाँव में। हम सब परत में हैं।

राखी की शुभकानाएं।

प्रज्ञा मिश्र