दुनिया में कितना कुछ है जो हम नहीं जानते की हम नहीं जानते और उन्हें जानने के बाद उसके बारे में और जाने बिना भी नहीं मानते।

ऑल इंडिया रेडियो की कॉलर ट्यून को करोड़ों लोगों ने सुना है। राग #शिवरंजिनी पर आधारित यह धुन स्मृतियों की एक लड़ी लेकर आती है। कितनी रोचक बात है कि  यह धुन एक चेक नागरिक  द्वारा रची गयी थी जिनका नाम था #वाल्टरकॉफ़मैन।

संलग्न वीडियो में जो चित्र है उसमें विलिंगडन जिमखाना में पियानो पर कॉफ़मैन के साथ, सेलो पर एडिजियो वर्गा और वायलिन बजाते हुए मेहली मेहता को दिखाया गया है।

वाल्टर कॉफ़मैन  का जन्म 1 अप्रैल 1907 को हुआ।  कार्ल्सबैड, बोहेमिया (उस समय ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा) में जन्मे वाल्टर कॉफ़मैन ने, यहूदियों के नाज़ी उत्पीड़न से भागने से पहले प्राग और बर्लिन में संगीत का प्रशिक्षण लिया था।

1934 में जब हिटलर ने प्राग पर आक्रमण किया तब 27 साल के कॉफ़मैन भाग कर बतौर यहूदी शरणार्थी भारत आ पहुँचे। अपने   लिखित दस्तावेज़ों  में उन्होंने यह स्वीकारा है कि वे बॉम्बे इसलिए आ पहुँचे क्योंकि यहाँ आसानी से वीज़ा मिल गया था।

भारत में उनके शुरुआती दिन कठिन थे। आगे वे १९३७(1937) – १९४३ (1946) तक भारत में आकाशवाणी में निदेशक रहे।

मुख्य रूप एक संगीतकार और प्रशिक्षक, वाल्टर हॉफमैन, 1957 में ब्लूमिंगटन उत्तरी अमेरिका, इंडियाना विश्वविद्यालय में संगीतशास्त्र के प्रोफेसर बने। 1964 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण की।

उनकी मृत्यु 9 सितंबर 1984 को हुई।

यह आश्चर्यजनक है कि जिस धुन को सुनकर भारतीयों की पीढ़ियां बढ़ीं, वह एक यूरोपीय द्वारा बनाई गई थी – यह साबित करता है कि संगीत सीमाएं नहीं जनता , और वास्तव में एक सार्वभौमिक भाषा है।

प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’

साभार :
(यह रोचक तथ्य #radioplaybackindia के वाट्सअप ग्रुप पर मिला। अधिक जानकारी के लिये मैंने स्क्रॉल डॉट इन की वेबसाइट देखी। आलेख में मौजूद तथ्य एवं अनुच्छेदों के अनुवाद स्क्रॉल डॉट इन के लेख आधारित हैं।)

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