जिस भूखंड में हिन्दू – मुसलमान और अन्य धर्मो के मिलने से एक मिली जुली संस्कृति का विकास हुआ औऱ जो भारत के एक एक व्यक्ति के जीवन का व्यापक तौर पर हिस्सा है उसे बार बार कुरेद कर मुग़ल मुग़ल कर के कुछ भारतीय हिन्दू क्या हासिल करना चाहते हैं?

क्या हम कुछ भारतीय हिन्दू पूरी दुनिया में बसे हिंदुओं को असहज कर के खुशी पा रहे हैं?

हमें ये क्यों नहीं समझ आ रहा कि हमने मॉडर्निटी के चक्कर में अपने बच्चों को हिन्दू पद्धति नहीं सिखाई पढ़ाई, पहले शुरआत वहां से करनी है। अपने टेक्स्ट पढ़िए और अपने घर में हिन्दू बनिये पहले। मुसलमान से नफरत कर के हिन्दू नहीं बनिये उससे आप सनातन संस्कृति का मज़ाक बना रहे हैं।

बच्चे को साथ मंदिर ले जाइए, रामायण पढ़िए, गीता पढ़िए, वेद पढ़िए, अपने भीतर जाती कुप्रथा को ख़त्म करिये। एक वैज्ञानिक सोच वाले हिन्दू को अपने भीतर जन्म दें। मकड़ी को नहीं।

मुसलमान से नफ़रत कर के हिन्दू का भला नहीं होगा। कट्टरता को कट्टरता से ख़त्म किया जा सकता तो हिन्दू जाती फलती फूलती नहीं।

देश भक्त तो भारत का मुसलमान भी उतना ही है जितना किसी भी धर्म का भारतीय। बाकी देश बेच देने के लिए ततपर मौका परस्त किसी भी धर्म में मिलते हैं।

एक सिरे जान बूझकर आग लगाने से क्या होगा। अब तो धर्म परिवर्तन हुए इतना साल हो गया है तो क्या आप सबको वापिस हिन्दू बनवाएंगे, ये कौन सी चुल्ल है। ऐसे तो दुनिया में कितने ही लोग है जिनकी नस्लों में कालांतर में धर्म परिवर्तन हो चुके है तो उससे अब वर्तमान में क्या?

हिंदुओं के अपने संस्कार हमारे खुद मज़बूत नहीं हैं। वर्तमान में क्या है कितना है उसको समेटने के बजाय 700 इसवी 800 इसवी में जाकर क्या हासिल होगा?

हम सभी इस समय जो जो बेरोजगार या पैसे की किल्लत में हैं अवसाद ग्रस्त हैं उसका ध्यान भटका कर रखने के लिए सम्प्रदायिक तनाव काफी है।

यदि हम किसी को दबा कर उसके साथ रहना चाहते हैं, बार बार किसी के ऊपर छींटा कसी करते हुए उसके साथ रहना चाहते हैं तो ऐसे भी नहीं रह सकते , क्या हिन्दू क्या मुसलमान। किसी को दबा कर रखने से , उसका उपहास करने से उसमें आपराधिक प्रवृत्ति का विकास होता है। हमको अपने आस पास अपराध को बढ़ावा देना है क्या?

हम लोग चुप नहीं हैं, सहिष्णु हैं, मतलब मिला जुला के चलने वाले। आप आज मुसलमान से मिला के नहीं चलना चाहते क्योंकि आपके भीतर अपने भाई भावज माँ बाप से मिला जुला के चलने की प्रवृत्ति का ह्रास हो चुका है । आप में से जो भी मेरा संस्कृत , मेरी संस्कृति कर के हाय हाय कर रहे हैं आप खुद भारतीयता पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं।

दुनिया में जो भी लड़ाइयां चल रही है सब पैसे और पावर की लड़ाई है जिससे सिर्फ आम आदमी लुटता है वो किसी भी धर्म का हो।

धर्म हमको अनुशासन देता है कट्टरता नहीं। कट्टरता उसे राजनीति देती है। हमें इस अंतर को समझ कर भारत को सभी धर्मो के अनुयायियों के लिए एक सुरक्षित भूखंड बना कर रखना होगा जिसमें सब अपने अनुसार स्वतंत्रता से धर्माचरण करें।

और आखिरी बात ये कि मनोज मुंतशिर का वीडियो निहायत ही रेसिस्ट था जिसका समर्थन नहीं खंडन होना चाहिये। ब्रह्मा की डायरेक्ट ब्लड लाइन वाली बातें कर के हम 2021 में क्या साबित करना चाहते हैं!

वाकई दंगे के हालात देख रही हूँ भारत में, सोशल मीडिया में बड़ी ताकत है अब। हम मिडल ईस्ट की गलतियों को देख कर सीखते क्यों नहीं। भारत अपनी संस्कृति और विविधता संभाले नहीं रख सका तो हम भयंकर मुसीबत में पड़ जाएंगे।

एक नोटबन्दी हुई थी तो पूरा भारत अपने हाल पर छोड़ दिया गया था क्या धर्म क्या जाती सब उसी लाइन में लगे पड़े थे।

सोचिये व्यापक कुछ विध्वंसक हो गया तो आज़ादी भी गयी और अधिकार भी गए हर समय लाठी ही लाठी खाते रहो ।

हम भारत के नागरिक धीरे धीरे अपनी स्वतंत्रता गंवाते जा रहे हैं केवल कुछ लोगों की अल्प बुध्दि से। उन्मादी हो गए हैं दोनों तरफ के बेरोजगार युवा।

घर में आराम से बैठा चाय बिस्किट दिशाहीन मध्यम वर्ग सोशल मीडिया पर अलगाव को ऐसे हवा देता है जैसे सब उसके साथ ही घटित हुआ हो। जबकि मुसीबत आने पर वे अपने ही परिजन को छोड़ भागेंगे।

सदियाँ बदलने से प्रगतिशील नहीं होते, सोच पिछड़ती जा रही है भारत में लोगों की।

आज भारत का मुसलमान जय श्री राम नहीं करता तो मारते हो। किसी मुगल ने 1000 साल पहले क्या किया उसका बदला आज लेते हो।

मुस्लिम बहुल इलाके में हिन्दू दहशत में है तो हिन्दू बहुल इलाके में मुसलमान दहशत में।

कल दलित सवर्ण में तलवार निकलेगी, फिर आपस में ऊंचा ब्राह्मण नीचा ब्राह्मण। फिर आपस में बड़ा ओबीसी छोटा ओबीसी, फिर आरक्षण पर वर्चस्व, अरे कब तक लड़ते रहेंगे!

फिर कट्टर हिंदू और मुसलमानों को LGBTQ अधिकार से दिक्कत होगी, पता चला अपने को छोड़ के बाकी कौन मरता है ये संवेदना ही मार दी कोई फर्क नहीं!

आगे सबको औरत को दिए जाने वाले अधिकार से दिक्कत होगी।

” PURE blood line ” यह एक सबसे घटिया किस्म का Racism है।

आदमीयत से बड़ी कोई चीज़ नहीं है।

भगवान राम यह भी बोले थे कि किसी को भी किसी व्यक्ति की जान लेने का हक नहीं है क्योकि ऐसा कर के हम उन लोगों के अधिकारों की हत्या करते हैं जो उस व्यक्ति पर आश्रित होते हैं।

बदले की भावना में अपना असली सनातन पक्ष ही भूल गया है भारत।

नेपाल तो पूरा हिंदू राष्ट्र है और चीन के प्रभाव में आकर वो भी हम पर गुर्राता है। हम एक नहीं होंगे तो अपने धोखेबाज़ पड़ोसी देशों से कैसे लड़ेंगे।

उदारवाद और शांति की कामना इतनी बुरी चीज़ नहीं है इसमें हर किसी के लिए जगह है।

पूनम ज़ाकिर ने सटीक विचार रखे —


बड़ा बनने के लिए बड़ी लकीर खींचनी होती है । किसी लकीर को मिटाने से बड़ा नहीं हुआ जा सकता ।
हम भारतीयता को महत्व नहीं देते हम धर्मवाद, जातिवाद पर देश को चलाना चाहते हैं । परिणाम हम तो देख ही रहे हैं, आने वाली सन्तति का दुर्भाग्य है कि हम उन्हें जीने के लिए सुख सुविधा नहीं, जीने की जद्दोजहद दे कर जाएँगे ।

वरिष्ठ कवि ज्योति खरे बड़े सटीक शब्दों में एकता का समर्थन करते हैं

संवेदनाओं की पीठ पर जहर भरी उंगलियों से जो इबारत लिखी जा रही है वह देश और आने वाली पीढ़ी के लिए घातक है. सच को अगर नही स्वीकार किया या नहीं समझा तो परिणाम
खतरनाक होंगें.

अब चुप्पियों को
दरवाजे के बाहर
टांगने का समय है
सन्नाटों में
आवाज़ भरने का
समय है–

आपने ऐसे समय यह आलेख लिखा जब सब चुप्पी साधे हैं, जिन बिंदुओं का उल्लेख आपने किया है यही हमारे जीवन का सच है और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए संदेश है.
यहां सिर्फ राजनीति और वोट की अहमियत है,संस्कार ओर संस्कृति तो दूर की कौंड़ी है.
कई सदियों से हिन्दू मुस्लिम आपस में मिलजुल रह रहें है और आगे भी रहेंगे बस हमें अपने जीवन मूल्यों को सही दिशा में ले जाना है,और जो हो रहा है उसे नजरअंदाज करना है.
मैं दो साल मिडिल ईस्ट में (ओमान ) में रहकर आया हूँ वहां जो हिंदुओं को इज्जत और सम्मान देते है वह कल्पना से परे है,कभी कभी तो लगता है इतनी इज्जत हमें अपनों से भारत में कभी नहीं मिली.
शंकर जी का 300 साल पुराना मंदिर मस्कट में पुराने अरेबियन इलाके में स्थित है
वहाँ हिंदुओं के साथ मुस्लिम (अरेबियन) भी जाते हैं.

प्रज्ञा मिश्र ”पद्मजा”

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