अफगानिस्तान
देखू उधबा केहन उठलय
देश परोसिया जे अफगान
त्राहि मचल छै सगरे धरती
कब्जा कयलक तालिबान।
जान बचा निज गनी भागल
धय लेलक ओ शरण विदेश
जनता कानय हकन नोर सँ
पूछि रहलय नहि कियो उदेस।
हवाइ जहाज मे मनुख झूलैत
पहिल बेर जिनगी मे देखलहुँ
जान बचबय लै जान गमौलक
आतुरता से भावहिं सँ बूझलहुँ।
तालिम माने शिक्षा भेलय
छात्र कहाबथि तालिबान
एहन कोन कोर्स ई होबय
झीकय जे जनता के प्राण।
सत्य अहिंसा के उद्घोषक
छियह परोसिया हिंदुस्तान
देखियो क’ तँ किछु सीखह
किए बनल छह बौक अकान।
शाँति पुजारी बनने भेटतह
तोरो शाँति औरो समृद्धि
बंदूक त्यागि कलम पकरह
सुख सागर मे हेतह वृद्धि।
गोली बारूद सब विध्वंसक
एकरा सँ नहि राखी मेल
विस्फोटक छै कोन ठेकाना
छन्नहि मिटा देतह सब खेल।
मणिकांतक बतिया मानह
राखि दैह हाथक हथियार
सगर विश्व मे नाम कमेबह
बूझतह सब तोरो बुधियार।
-मणिकांत झा, दरभंगा १७-८-२१
बहुत बहुत धन्यवाद आ आशीर्वाद
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वैश्विक समस्या आधारित रचना सँ मैथिली भाषा साहित्य , समृद्ध भेलय , बहुत नीक लागल पढ़ि कँ, बहुत प्रेमिल भाषा सँ पाथर सँ संवाद केलौं अहां ।
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