प्राथमिकता

अपने लिए जो सबसे ज़रूरी काम था उसे अंत समय के लिए छोड़ दिया बेकार की बातों में उलझे रहे, पछतावे के सिवा कुछ न हासिल किया , जाने ये कैसे बादल हैं दिमाग के जंगल में जो प्राथमिकताओं के सामने कोहरा बन कर खड़े हो जाते हैं, हम उलझे रह जाते हैं किसी बेहद गैरज़रूरी बात में और दुःखी करते जाते हैं उसे जिसे हर वक्त बस हमारी प्रतीक्षा थी।

दिल के करीब प्रेमी/प्रेमिका, अपने बच्चे, कोई अति प्रियजन, पति/पत्नी , माँ/बाप क्या ये ही वो लोग नहीं हैं जो साथ के लिये सबसे ज़्यादा तरसते हैं और उन्हें ही हमारा साथ बस दिन के अंत में मिलता है, वो भी थकान से चूर सो चुके शरीर से बस पाँच मिनट पहले तक।

दूरियाँ, खोखलापन और फिर टूटन, रिश्तों को तो जैसे गलतफहमिंयों के शिकार होने का अभिशाप मिला हुआ है।

हम प्यार तो चाहते हैं, पर न जाने क्यों अपने आप को अभागा समझते रहते हैं कि हमें तो प्यार मिल ही नहीं सकता और ऐसा सोचते आती हुई खुशी अपने आप से बदला लेने अपने हाथ से नोच कर फेंक देते हैं, जैसे हम डिज़र्व ही नहीं करते खुश रहना, जैसे यह दुःख पीड़ा अकेलापन , अवसाद ये सब हमारा है, हमारे लिए बना है और प्यार, खुशी एक आसान प्राथमिकताओं वाली ज़िंदगी हमारे लिए नहीं बनी!

क्यों देने हैं ऐसे दुःख खुद को, क्या हम खुद को कह नहीं सकते , हम आज ही इस प्यार के हकदार हैं और जो हमें अच्छा लगता है हम उसको समय देंगे, जिसे हम अच्छे लगते हैं हम उसको समय देंगे, और ज़्यादा समय देंगे, पहले जो ज़रूरी हैं , ज़िन्दगीं में समय उनको देंगे।

प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
21/09/21

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