पानी
बड़ी सहजता से जीवन में उपलब्ध
किसी अति प्रियजन से हो तुम पानी
जिसके रहते कीमत समझ आती नहीं
जिसके बिना ज़िन्दगी जी जाती नहीं
नीर की तासीर ठंडी पेय अमृत लगेगा
दिल हल्का गुस्सा कम मन शांत करेगा
मशीन संचालित दुनिया से अपमानित
पानी अपनी कीमत संतति से वसूलेगा
बढ़ रहा है तापमान, गल रहे हैं हिमनद
खतरनाक है समुद्र का बढ़ता जल स्तर
निसर्ग अम्फान ताउते यास और गति से
डरा रहा है बवंडर समुद्री चक्रवातों से
हम खतरे में हैं घट रहा है पीने योग्य पानी
घट रही है खेती योग्य ज़मीन और किसानी
बाढ़ का पानी उखड़ चुकी मिट्टी पी लेता है
बाढ़ का पानी उपजाऊ भूभाग निगल लेता है
रहने लायक ज़मीन और पीने लायक पानी नहीं है
ये समस्या एक नँगा सच है, कोई कहानी नहीं है
प्रकृति का सिकुड़ता आँचल, छल का परिणाम है
आज दोहन और लालच की कोई सीमा ही नहीं है
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गरीब की छटपटाहट के छाले उभर आए हैं
अवैज्ञानिक पद्धतियों से दिन दुभर आये हैं
पाँच नदियों से आबाद थी सभ्यता जिसकी
धान बोकर उसका वाटर-टेबल उजाड़ आये हैं
योजना के खोखलेपन और लोलुपता में
धरती के गर्भ से जलराशि लूट ली गयी है
गलत नीतियों और अदूरदर्शिता के मारों,
छोटी सोच से मनुष्यता खतरे में आ गयी है
आबादी को पानी पिलाने जहां प्रतिदिन
दस मिलियन लीटर भेजा जाता है ट्रक से
बोलो अब वहाँ फसल लहलहायेगी कैसे,
सोचो,चेन्नई में फ़िर खुशहाली आयेगी कैसे
बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं बनती हैं महानगरों में
किसके हिस्से का पानी है मेट्रो सिटी के घरों में
जल का एक कतरा जब बाल्टी से छलकता है
कोई कुपोषित भूख से पहले प्यास से मरता है
देंगमाल में अगर औरत शादी करके लायी गयी है
वो जीवन की प्राणधारा पानी भरने ब्याही गयी है
ये “वाटर वाइफ़” हैं स्त्रीयाँ नहीं बस मटका ढोएंगी
शायद योनि या हृष्ट पुष्ट दासियाँ मानी जायेंगी
लीलता है कैसे समुद्र, पूछिये ओढीशा के गाँव से
दिखाएंगे पुश्तैनी ज़मीन का कागज़ अपनी नाव से
भरते हैं भूमि कर भूखंड का वो बेचारे मज़लूम
कहाँ गया घर कहाँ गयी दुकान अब नहीं मालूम
प्रकृति ,जीवन और निर्माण से खिलवाड़ हुआ है
इस खिलवाड़ का असर विदारक दिख रहा होगा
कहीं पहाड़ दरक रहे हैं बाँध कहीं टूट रहा होगा
बीतेगी, भोगेंगे नागरिक, ज़िम्मेदार कौन होगा?
पानी के कारण होने वाले युद्ध निपटने हैं
तो पानी के कारण हुआ विस्थापन समझिए
आदमी को जो प्यास आदमी नहीं रहने देगी
उस मेघपुष्प को विस्फोटक बम समझिए
प्रज्ञा मिश्र, “पद्मजा”
मुंबई , १८-०९-२०२१