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हम White House Guest House, Warsoli में रुके थे , जो Mandwa से 20KM की दूरी पर है। Mandwa से Warsoli का किराया होता है 500₹ . Mum-Mwa-Mum का पूरा फेरि किराया 700/- प्रति व्यक्ति

अगले दिन का नाश्ता पोहा और चाय गेस्ट हाऊस वालों ने ही करवा दिया। दोपहर बारह बजे करीब फ्रेश होकर हम सभी प्लान मुताबिक Hotel Vasco Da Goa गए।

Vasco Da Goa Beach Hotel Resort

स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेकर हमने Van Booking करी, कुलाबा फोर्ट के लिए रवाना हुए, अलीबाग बीच पर दोपहर में पानी कम होने से किले तक हमने किले तक का रास्ता तांगे पर पूरा किया।

Samandr se hote hue Kulaba Fort ka rasta
कुलाबा किला

किला पुरतत्व विभाग के अंतर्गत है हमें जाने के लिए 30 ₹ का टिकट लगा। रख रखाव बिल्कुल नहीं है। चूँकि यहाँ घोड़े अस्तबल थे तो खुली घास की जगह बहुत है जिसमें कांट छांट नहीं होने से वे आदम कद बढ़ गए हैं और किला भीतर घास में ढंक गया है। गाय जहां तहां घूमती चर रही थीं, सम्भवत: वो वहां रह रहे परिवार द्वारा पाली जाती होंगी।

मैंने एक औरत की तस्वीर ली जो फल वगैरह बेच रही थी। वह वहां के पुजारी परिवार से थी जो सभी मंदिरों में नियमित पूजा पाठ करते थे। हमने गणेश मंदिर, शिव मंदिर, गुल मंदिर देखा, कुलाबा किला का दोनों दरवाज़ा देखा, अप्सरा तालाब भी देखा।

भग्न अवशेषों ने पुणे के शनिवार वाड़ा की याद दिला दी। ये किले अपने समय की भव्यता अपनी बनावट में समेटे बैठे हैं। मैंने गणेश मंदिर के भीतर हुई नक्काशी के चित्र लिए, शानदार कलाकृति है। पूरे दरवाज़े को ग़ौर से देखने पर सुंदर कलाकृति समझ आती है

गणेश मंदिर
गुलमन्दिर में केवल माँ की मूर्ति है
अप्सरा ताल

यह किला सैनिक छावनी की तरह था जिसकी मदद से जंजीरा पर कब्ज़ा बनाने में सफलता मिली।

किले में करीब एक घन्टा घूम कर हम पानी बढ़ने से पहले तांगा संख्या 55 से वापिस अलीबाग बीच की ओर रवाना हो गये, जो लोग पुश्तों से इस किले के भीतर रह रहे है उनका जीने का तरीका, रहन सहन परिवेश सब बहुत कठिन है यह तय है

अगला पड़ाव रेवदंडा की पहाड़ी पर बना बिड़ला मंदिर था। सौ सीढियां चढ़ कर जाने वाला बिड़ला मंदिर शांत सौम्य और सरल वातावरण । वहाँ चारों तरफ पहाड़ का मनोरम दृश्य था। जैसे हरे पहाड़ का घोंसला हो और बीच में सफेद संगमरमर का बिड़ला मंदिर। मंदिर में सभी देवी देवता की मूर्तियाँ थीं।यहाँ मोबाइल मनाही थी। हमने तस्वीर नहीं ली। मंदिरों के आगे चौखट और दरवाज़े की नक्काशी कुलाबा फोर्ट के गणेश मंदिर की नक्काशी से प्रेरित थी, ऐसा व्यक्तिगत तौर ओर मुझे लगता है। मंदिर में एक घंटा बहते बादल और खुला आकाश निहारने के बाद हम चल दिये । वहाँ हरे घास के मैदान बनाये गए थे जिनपर कतार में चंपा के पेड़ उगे थे और सफेद चंपा का फूल सुंदर लग रहा था। हमने आदित्य बिड़ला के सफल अल्पायु जीवन औऱ उनके पुत्र पौत्रों को साधुवाद दिया, इतने सुंदर पर्यटन स्थलों को बनाये रखने के लिए।

बिड़ला मंदिर जाने के रास्ते में हमने देखा कि पूरा इलाका घने जंगलों के बीच बने घर और बंगले से गुँथा हुआ है। घरों के बीच नें नारियल और अन्य लम्बे पेड़ कतार से सजे हुए थे और वन्य क्षेत्र के साथ कितना सामंजस्य है क्या क्या कठनाई है यह तो वहाँ रुक कर बात कर के ही पता लगता। परिवार के साथ यात्रा करने में एक दिक्कत यह गई कि आप घण्टों बैठ कर स्थानीय लोगों से बात कर के जन जीवन नहीं समझ सकते। उसपर से चूंकि मैं स्त्री हूँ तो पुरुषों से बातें करते रहना जानकारी हासिल करने की दृष्टि से भी एक।प्रकार से सीमा से बाहर का प्रयास लगने लगता है।

फिर भी देख बहुत कुछ देख कर समझ आया। अलीबाग और आस पास के क्षेत्रों में सामाजिक सौहार्द नज़र आया। मंदिर और दरगाह शांत और बिना आडंबर बनाये गए थे। हम वरसोली में जहां थे वहां गणेश मंदिर में कोई पुजारी नहीं था, बड़ी सी जगह थी , जाकर खुद प्रणाम पूजा कर के आ जाओ। ऐसे ही और भी स्थलों पर देखा।

लोकल ट्रांसपोर्ट की दिक्कत लगी। अगली बार आपनी गाड़ी लेकर जाना उचित है। यहाँ और भी आना चाहूंगी। यहां काफ़ी सारे तालाब हैं शहर के बीचों बीच और एक सरोवर हमने देखा जहां कमल ही कमल थे।

बच्चे जो यहाँ बड़े हो रहे, लोग जो यहाँ रहते हैं उनके जीवन में कितना वैविध्य भरा है जिसके लिए हम मुम्बई वासी तरसते हैं, इसी लिए हम यहाँ आते हैं।

जीवन चलती गाड़ी है, हम रात आठ बजे मांडवा डॉक पर फेरी की प्रतीक्षा करते हुए वापसी में हो लिये। रात के समुद्र में फेरी प्रेमी युगल जोड़ों की अधिक होती है , मन रंगे वस्त्रों में अप्सरा सी युवतियां, दिन की थिरकन रात में नहीं थी, रात में समुद्र बाहों में समेट झट किनारे लगा गया, पता भी नहीं चला मुम्बई कब आ गया।

लौटना

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