■ ■ कविता – “ये कैसा दुलार”

जब तब जहाँ तहाँ मारा गया है
लड़कियों के आत्मविश्वास को
अकेले खड़े हो पाने की क्षमता को
कभी प्रेम जता कर
कभी कमज़ोर बता कर

“जहाँ जाना है भाई साथ जाएंगे”
“बेटी जात से कैसे बाहर के काम कराएंगे”
“तुम रहने दो काम भारी है”
“बेटी घर संभालना बस तुम्हारी ज़िम्मेदारी है”
“कहाँ इनसे होना ये सब लड़के कर लेंगे”
“चाची आप को कैसी चिंता सज धज रहो
बिजली मोटर के काम चाचा देख लेंगे”
“लड़की क्या चार चार रोटी खाएगी”
“बिहा के करी जे अइसन मोटाएगी”
“बेटा मोंट झोंट है त का हुआ “
“बेटा पैदा ही होता है घी में डूबा हुआ”
“सब ताली दीजिये बहादुर बिटिया के लिए
घर के काम कर के भी बी ए वाली हो गयी”
“बेटा ही हम लोगों को देखेगा इसलिए
दिल्ली में साल भर पढ़ाये नौकरी बहाली हो गयी”

उगते हुए सपनों को
खर पात बता कर
कैंची से कतर ब्योंत
सुंदर सुनहले कतारों में
दुनिया को दिखाने
सजाते रहे माली ।
प्यार के नाम पर
दुलारे जाने के नाम पर
अनजाने ही पंगू बना डाला
आश्रित रहना है
दबकर जीना है
भय लज्जा समाज
सब का डर एक साथ दिखा डाला ………………… फिर कहते हैं
weaker sex, labeled incompetent .
Mostly a liability , when pregnent.

प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
२६-११-२०२१

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