सदाबहार
शीतल बगल वाले विंग में रहती हैं, उनसे पच्चीस दिसम्बर की रात मिली थी, शायद ऑक्टोबर नवरात्र के बाद सीधा बड़े दिन पर। देखिए न हम एक ही सोसायटी में रहते हैं और इस दौर में कितने घर ऐसे हैं जिनके वाशिंदों से साल भर से मिलना नहीं हुआ होगा, जबकि हम एक ही जगह रहने वाले परिवार हैं। इस तस्वीर को लेने वाली शीतल भी पिछले ग्यारह सालों से वैसी ही सदाबहार है, छरहरी, सुंदर, मेहनती शिक्षिका।
स्टेटस देखते रहते हैं हम सब एक दूसरे के , कौन कैसा कर रहा है इसका एक अंदाज़ा सोशल मीडियाई जीवन से तो लग ही जाता है।
जैसे इस तस्वीर में एक सदाबहार दूसरे सदाबहार को देख रहा है। यह तस्वीर बहुत मोहक है। इसे देखते हुए सदाबहार की आँखें दिखाई देती हैं, आसमान की तरफ़ उठी हुई, निहारती , अगला पिछला याद करती, दो हजार उन्नीस से पहले का जीवन खुले आसमान से बतियाती। घटती आज़ादी और बढ़ती पाबंदी और उड़ने की इच्छा जैसी बहुत सारी बातें कर रहा है सदाबहार का फूल फैले आकाश से।
सदाबहार के फूल के पास कभी हाथ में चाय होती है, कभी कॉफी , कभी किताब, कभी अख़बार, कभी बच्चे के बालों में लगाने के लिए तेल का डिब्बा, कभी लैपटॉप, कभी डायरी , कभी कुछ नहीं, नितांत खालीपन औऱ गहरी लंबी साँस।
ज़रा एक दिन ध्यान न दो कि मुरझा ही जाते हैं और एक वक्त भी पानी पूछ लो तो फूलों के पत्ते बस यूँ कंघा कर बाल काढ़ तैयार।
तुम सुन रहे हो न बादल, ये भी कोई समय है बरसने का, अभी नहीं आना था तुमको कितने काम पड़े हैं, साल का पहला महीना है, उसपर ये शीतलहरी , और तुमने भी करेले पर नीम चढ़ा कर माना है। ठंड कैसी सी बढ़ गयी है कि खुद को समेटे न मन गरमा रहा, अब बताओ अकेली कौन सी बातों की अलाव जलेगी। जरा बरस भागने की तरकीब नहीं ठीक , भरी धूप आओ छाँव बनकर तो जानें, यूँ कड़कड़ा कर कौन सा बहादुर बन गए जी।
ह्म्म्म…सच्ची आज मन बड़ा सदाबहार हो रहा है।
प्रज्ञा मिश्र
Aap ko dono hath jod kar pranam.Aap ka likha hua koi bhi lekh ho ya gaya hua koi bhi gana…ya koi festival ke bare main batate hue bolona ho ya baccho ko lekar kuch bolna ho sab itna aacha lag ta hai ..aap ke is kala ko such main 🙏
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❤️ thanks a lot aap log toh family hain mumbai mein … Aas paas hi hain toh takat rehti hai
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