ये सारे शेल मैंने और बच्चों ने साल 2018 में पालघर के एक समुद्री तट से जमा किए।
दूर-दूर तक तट की रेत सफेद दिखाई देती थी। जब हम पास जाकर झुकते थे तो यह छोटे-छोटे विभिन्न आकृतियों के शैल गिरे पड़े मिलते थे। हमने समझा यह सफेद रंग वस्तुतः इन आकृतियों के कारण इनके आच्छादित होने के कारण यहां दिखाई देता है वह दृश्य बहुत ही अद्भुत था।
बहुत कौतूहल होता था यह सोच कर इनमे जीवन रहा होगा कभी अब यह निर्जीव उठा लिए जाने योग्य मानव के लिए उपहार स्वरूप प्रकृति के पैरों में पड़े हैं मैं इन्हें उठा लेती हूं मुझे बहुत सुख हुआ इन्हें अपना बनाकर क्योंकि इसमें ना तो किसी की हत्या हुई ना तो मैंने किसी जीवन को कष्ट पहुंचाया।
इनकी आकृतियां समुद्र की लहरों से बनी लगती है जैसे लहरों के साथ उतरते चढ़ते ये लकीरें उतर आई हैं। ठीक वैसे जैसे समय के साथ आदमी के माथे पर लकीरें उभर आती हैं भवसागर में समय की उहापोह में आदमी अपने आप को योग्य और जीवित बनाए रखने के लिए उसकी धारा से आगे पीछे होता रहता है और समुद्री जीव अपने आप को जीवित रखने के लिए लहरों के साथ ऊपर नीचे होते रहते हैं।
उस साल हम जिस रिसोर्ट में घूमने गए थे उस से 1 किलोमीटर की दूरी पर बहुत सुंदर प्राकृतिक बीच था यहां पर प्लास्टिक अथवा अन्य मानव जनित प्रदूषण सबसे कम था लोग बर्ड वाचिंग कर रहे थे और छायाचित्र लेने के लिए घंटों बैठे थे।
शाम में जब हम सागर तट की तरफ बढ़े तब सब कुछ इतना साफ सुथरा और शांत था कि इसकी प्राकृतिक छटा के कारण हमें थोड़ा भय सा हो गया।
वहां देखने में इतना अच्छा लग रहा था कि हमें लगा यह आगे कहीं दलदल तो नहीं है लेकिन हम धीरे-धीरे पैर बढ़ा के आगे जाते रहे पानी बहुत ही अंदर की तरफ था शाम आते आते बहुत ऊपर आ गया हमने खूब मजा किया था । बड़े ही आनंद का दिन था वह।
#याद
