नौ साल पहले, आज के दिन, अपनी एक दोस्त की बात साझा करते मैने अपनी वाल पर लिखा था 𝙈𝙞𝙣𝙚 𝙞𝙨 𝙖𝙡𝙡 𝙤𝙧𝙖𝙣𝙜𝙚, क्योंकि मैं उसे साहस और वीरता का रंग समझती और पढ़ती आई थी। उस समय तक भी बड़ी जनसंख्या के लिए सारे रंग शांति स्मपन्नता साहस और विविधता का प्रतीक की ही होते थे।

मगर आज कोई लिख दे कि “mine is all orange'” तो इसके रूपक गढ़े जायेंगे और उसका खेमा निर्धारित हो जाएगा।
सोचने वाली बात है कि सभ्यता के शीर्ष पर छोटी छोटी बातों के कारण मनुष्यता के बड़े ध्येय को नज़र अंदाज़ करना स्वीकार्य सत्य हो गया है। जिसे हम अक्सर 𝘼 𝙣𝙚𝙬 𝙣𝙤𝙧𝙢𝙖𝙡 कह कर ठंडी सांस भर लेते हैं और अपने दायित्वों के मुक्त होने का प्रयास करते हैं।
हम बहुत नगण्य बातों पर अधिक बल दे रहे हैं और भूल जा रहे हैं कि इस पूरे ब्रह्मांड में करोड़ों आकाश गंगाएं हैं और हम उसके एक तारे के चारों तरफ घूमते सिफ़र।
हम पूरे ब्रह्मांड की तुलना में एक बैक्टेरिया बराबर भी नहीं हैं । हम में से हर समुदाय को अहंकार और वर्चस्व की लड़ाई सब समाप्त होने से पहले खत्म करना चाहिए। वर्ना ग्लोबल वार्मिंग नाम का राक्षस और बढ़ती गरीबी तो वैसे ही मूंह खोले बैठे हैं।
भारत अगर बहुत देशों से बेहतर है तो इसे विकसित देशों जैसा बेहतर होने की दिशा में शांति पूर्वक बढ़ते रहना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन, भारत के भीतरी राज्यों में बढ़ता पलायन, खेती योग्य ज़मीन में निरंतर कमी आना, प्रदूषण, महंगी शिक्षा, महंगे हस्पताल, बेरोजगारी, शिक्षित लोगों में सूचना सुरक्षा की अज्ञानता, स्वास्थ प्राथमिक उपचार की अज्ञानता, हृदयाघात से धड्डले से मरते लोग, बिखरते परिवार, कोविड के दौरान अनाथ हुए लोगों का जीवन, साइबर क्राइम, आर्थिक कारणों से पारिवारिक विघटन, बच्चों के साथ होने वाली हिंसा में बढ़ोतरी, बच्चों द्वारा की जाने वाली हिंसा में बढ़ोतरी, किताबों से विमुख होता समाज, सोचने समझने की तर्क करने की क्षमता का ह्रास, बुद्धिजीवियों की नियोजित वर्बल लिंचिंग, ट्रोलिंग का शिकार बनाना।
अपनी मेहनत की कमी को छुपाने के लिए अच्छा करने वाले को चापलूस या चाटुकार साबित करने की बढ़ती प्रवृत्ति। धोखाधड़ी के लिए मोबाइल का धड़ल्ले से बढ़ता प्रयोग, सांप्रदायिक हिंसा के बढ़ते शर्मसार करने वाले आंकड़े। ये सब हमारे देश को खोखला कर रहे हैं। इनको पहचान कर खुद से दूर करना होगा।
पूरा देश अगर एक जीवन एक शरीर है तो हर व्यक्ति उसकी कोशिका है। विज्ञान के रूपक से पूरी व्यवस्था को समझे तो कोशिका यानी cell, they are the smallest unit of life, cell से tissue बनता है, tissue से organ बनता है और organ मिल कर पूरा organsystem बनाते हैं। क्या इसी तरह पूरी civic body का निर्माण नहीं होता?
एक भी कोशिका खराब हो तो ऐसी स्थिति को कैंसर कहते हैं, अंग क्या पूरा कपूर आदमी जीवन जिए बिना ही खतम हो जाता है।
इसी तरह नागरिकों के मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार होने से खत्म होती हैं किसी देश की संभावनाएं, उस देश में जन्म लेते बच्चों का भविष्य और जैसे पूरी देह ठप्प वैसे पूरा देश ठप्प।
याद रख सिकंदर के हौसले तो आली थे..
जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली थे..!!!
प्रज्ञा मिश्र
मुंबई
Shatdalradio
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हुए नामवर … बेनिशां कैसे कैसे …
ज़मीं खा गयी … नौजवान कैसे कैसे …
आज जवानी पर इतरानेवाले कल पछतायेगा – ३
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २
ढल जायेगा ढल जायेगा – २
तू यहाँ मुसाफ़िर है ये सराये फ़ानी है
चार रोज की मेहमां तेरी ज़िन्दगानी है
ज़र ज़मीं ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जायेगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
अपनी उम्र ए फ़ानी पर तन रहा है दीवाने
किस कदर तू खोया है इस जहान के मेले मे
तु खुदा को भूला है फंसके इस झमेले मे
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटनेवाली दुनिया का ऐतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इसे प्यार करता है
अपनी अपनी फ़िक्रों में
जो भी है वो उलझा है – २
ज़िन्दगी हक़ीकत में
क्या है कौन समझा है – २
आज समझले …
आज समझले कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा
ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले धोखा खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २
ढल जायेगा ढल जायेगा – २
मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंग जो न कोरस है और न उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शमा तक नही जलती आज उनकी तुरबत पर
अदना हो या आला हो
सबको लौट जाना है – २
मुफ़्हिलिसों का अन्धर का
कब्र ही ठिकाना है – २
जैसी करनी …
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पायेगा
सरको उठाकर चलनेवाले एक दिन ठोकर खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २
ढल जायेगा ढल जायेगा – २
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा ये खयाल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जायेंगे
तेरे जितने हैं भाई वक़तका चलन देंगे
छीनकर तेरी दौलत दोही गज़ कफ़न देंगे
जिनको अपना कहता है सब ये तेरे साथी हैं
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैं
ला के कब्र में तुझको मुरदा बक डालेंगे
अपने हाथोंसे तेरे मुँह पे खाक डालेंगे
तेरी सारी उल्फ़त को खाक में मिला देंगे
तेरे चाहनेवाले कल तुझे भुला देंगे
इस लिये ये कहता हूँ खूब सोचले दिल में
क्यूँ फंसाये बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहों पे तौबा
आके बस सम्भल जायें – २
दम का क्या भरोसा है
जाने कब निकल जाये – २
मुट्ठी बाँधके आनेवाले …
मुट्ठी बाँधके आनेवाले हाथ पसारे जायेगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – ४
( गीत – लिरिक्स डॉट नेट से, राग भूपेशवरी में, गीतकार का नाम नहीं मालूम)