जितना है उतना ही काफी है यदि न भी हो
तो पाने की कोशिश करते रहना भी काफी है

ट्रैफिक देख मन हताश हो
तो किसी छायादार बस स्टॉप पर रुख जाना
किसी से कुछ न बोलना
चुप चाप बढ़ती गाडियां देखते जाना

जीवन में सब उल्टा पुल्टा लगे तो
मन तार तार समय उलझा उलझा लगे
तो आती जाती भीड़ में
कुछ देर के लिए खो जाना

खुद को जानने में थोड़ी मुश्किल होगी
कोशिश कर पाए तो उतना भी काफी है

रोज़ की खिट पिट से आंखें मोड़ लेना
मन की शांति के सब कुछ लिए छोड़ देना
सबसे मुश्किल ध्येय होते हैं, लेकिन


प्रयास कर संसार में डूबने से बच पाए
तो की गई हर कोशिश भी काफी है।



प्रज्ञा मिश्र

क्षणिका – बुलबुला २
क्षणिका – बुलबुला २

Follow Pragya Mishra at

Advertisement