पढ़िए प्रज्ञा मिश्र की हिंदी कविता

विश्व कविता दिवस की शुभकानाएं। हमारे अपने शब्द हमारे काम आएं न आएं कहीं दूर किसी अनजान को अचानक राहत ज़रूर दे आते हैं, इसलिए कैरियर कोई भी चुनिए, हृदय के धरातल से उठे शब्दों को ज़रूर लिखिए

कई बार दो बहुत अच्छे लोग
कुछ रोज़ से ज़्यादा
साथ नहीं रह पाते
उनकी अच्छाई आड़े आ जाती है
चहनाएँ आड़े आ जाती हैं
आड़े आ जाता है अहं का टकराव
आगे, वे औसत लोगों के साथ हँसते हैं,
शाम गुज़ारते हैं और खाली हो जाते हैं
फ़िर भरी जाती हैं डायरियाँ,
लिखी जाती हैं कहानियाँ, कविताएँ,
और लिखे जाते हैं ब्लॉग
खोजा जाता है एकांत,
एकाकीपन से परे,
दूर एक टक देखते दरीचों से,
डिबिया सी जलती बल्ब की रौशनी में
एक चेहरा ढूँढकर सो जाना नियति है।

प्रज्ञा मिश्र पद्मजा की कविता

प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’

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