⚫ शब्द

मन की देहरी पर
सुबह शाम
शब्द आकर बैठ जाते हैं,
इनकी जी हुजूरी करनी पड़ती है
चाय पानी करना पड़ता है,
कंधे से गमछा उतार
इनके माथे का पसीना
पोछना पड़ता है,
शब्दों को दुलारना पड़ता है,
पास में बैठाना पड़ता है,
कौन जाने कितनी दूर से
किस युग से किस जन्म से
निकल कर ये शब्द
समय यात्रा करते हुए
आज मेरे पास आए,
कभी कभी अपने से लगे
कभी लगे पराए।

प्रज्ञा मिश्र ‘ पद्मजा ‘
२८/०४/२०२३

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