तुम क्या जानती हो इन दीवारों और बेड़ियों के बारे में तुमने तो बस ईंटें देखी , सीमेंट गारे से जुड़ी ईंटो को दीवार कह दिया और उस पर अपनी मर्ज़ी का एक वाल पेपर डाल आईं, उसकी सेल्फी निकाल आईं उसे खुशियों की नोटबुक में चुनवा लिया, तुमने सोचा यह इतना कर पाना तुम्हारी आज़ादी है, कहीं कोई बेड़ियां नहीं है।
लेकिन क्या तुम गांव शहर घूम कर किसी मिट्टी सने किसान के साथ बैठ कर हंस सकती हो, मिट्टी की महक बेरोकटोक उसकी बातों के माध्यम से समझने का प्रयास कर सकती हो।
किसी रेड़ी वाले के साथ चाय पीकर यह बातें कर सकती हो कि उसका जीवन जैसा है वह वैसा क्यों है, वह बच्चा था तो कैसा था, कैसे उसने अपने युवा दिनों के स्वप्न को धूमिल होते बर्दाश्त किया, उसको क्या क्या संभावनाएं तलाशने का मन था।
क्या तुम राह चलते बसों और ट्रेनों पूछ सकती हो कि किन कारणों ने किसी निम्न मध्यमवर्गीय को अपने सपनों की उड़ान भरने से पहले पर काटने पर मजबूर किया।
कोशिश करना पूछने की तुम्हे तुम्हारी हद दिखा दी जाएगी, कि अच्छी लड़कियां ये नहीं करती और वो नहीं करती और न जाने क्या क्या सब कहलवा दी जाएंगी।
तुम एक चाल अपनी मर्जी की चलने की कोशिश करना कोई पूरी बिसात अपनी तरफ खींच कर कहेगा हमने जैसा सिखाया है बस वही करो इसी में तुम्हारा भला है, यह कथ्य तुम्हारे जीवन की अदृश्य बेड़ियां हैं।
तुमको ये अदृश्य बेड़ियां और न जाने कितनी कितनी अदृश्य दीवारें नहीं दिखाई देगी, इसे देखने के लिए पहले अपनी चाहनाओं से प्यार करना होगा फिर उनको मूर्त रूप देकर उनके साथ खड़ा होने की जिद पालनी होगी।
तुम्हारी ज़िद से तुम्हारी ही मासपेशियां सबसे पहले खिंचेगी, यह खिंचाव तुम्हारी रीढ़ झुका देगा, तुम्हारी गर्दन हां और ना के बीच डोलने लगेगी तब तुम्हारे लिए खुद को ही ना कर देना सबसे आसान होगा ।
इस बार दीवार देखेगी तुम्हे जिसका सहारा लेकर तुम वहीं बंध जाओगी जहां से निकलने की कोशिश में एक अदृश्य ज़ंजीर खींच रही थी तुम।
फिर इसे तुम जीवन कह दोगी और इसी में घुल जाओगी। हां उड़ने का प्रयास तुमने किया था यही तुम्हारी सफलता रहेगी।
ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता, किसी के पास हिम्मतों की सीढ़ी पे कुछ एक्स्ट्रा पायदान भी होते हैं, जिसका निर्माण उन्होंने स्वयं किया था, पर हार उसको भी मिलती होगी, एक हद वो दीवार , एक ज़ंजीर जिससे अंततः वो बंधी है उसे दिखा दी जाती होगी।
हर किसी के जीवन में वो मोड़ आता है जिसमें साकारात्मकता के अतिरेक पर सच्चाई हावी पड़ जाती है। भोलेपन में हम कोशिश करना नहीं छोड़ते लेकिन हद तो दिखा दी जाती है।
प्रज्ञा मिश्र
